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________________ विषम . पृष्ठ सं. गाचा सं० प्रकीर्णक बिलों की संख्या १७० १६७-१६१ नरक बिलों का विस्तार १४०-१७१ सालों १८कों के स मीप काली का बाहुल्य १७२ इन्द्रक, भेणीबद्ध और प्रकीर्णक जिलों का कंचाई में अंतपाल १७३-१७४ प्रथम आदि पृध्वियों के अन्तिम पटल पोर विसीयादि प्रवियों के आदि पटलों का अन्तराल। १७६ १५-१७६ बिलों का ति पंतराल बिलों का जाकार १८१ १८ नरक बिलों को दुर्गन्ध २७४-१५० नरक में उत्पत्ति का कारण तथा उपपाव स्थान का साकार, व्यास व माहल्य १८१-८२ नारको जीव उत्पन्न होकर भूमि पर गिरकर उघलते हैं १५४ १९३-१०४ पुराने और मबीन नारकियों का परस्पर व्यवहार १८५ १८५ प्रपथक विकिया का विधान 14६-१६१ क्षेत्रपत पदार्थों की करता तया दुःखों का वर्णन १७ १९२-१५ मारकी दुर्गध वाली मिट्टी बाते है १६४ शरीर का यिम्न मिग्न हो जाने पर भी मरण नहीं होता १९५ मरक व स्वर्ग में तीनकर प्रकृति पालों की मरण से यह माह पूर्व विशेषता मरण होने पर सम्पूर्ण शरीर विलय हो जाता है क्षेत्र जनित,मानसिक, शारीरिक, असुरफत दुम्स १६२ १५०-२०० प्रत्येक पटल में जघन्य उत्कृष्ट आयु प्रत्येक पक्ष में शीय का उत्सेम ११५ २०२ अवधि क्षेत्र २०३-२०४ मरक से निकलने वाले मोवों की उत्पत्ति २०५ कौन जीव किस नरक तक उत्पन्न हो सकता है जो कितनी बार उत्पन्न हो सकता है। प्रथमादि नरकों में जम्म मरण का उत्कृष्ट अन्तर २०७ नरक में टिमकार मात्र भी सुख नहीं लोक सामान्य अधिकार व नरक.अधिकार समाप्त २६२
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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