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________________ [ ४२ ] . गाथा सं. विषय पृष्ठ सं० १२६-१२९ सातवीं पृथ्वी तक पाश्वभागों में वासबलयों का क्षेत्रफल १३०-१३१ दक्षिणोत्तर वातवलयों का क्षेत्रफल १४३ १३२-१३३ सातवीं पृथ्वी से मध्यलोक पयंत पूर्व पश्चिम दिशा में वातवछयों का क्षेत्रफल १४५ १३४-१३५ दक्षिणोत्तर पारवंमामों में वातवलयों का क्षेत्रफल १३६ पूर्व-पश्चिम दिशाओं में अवलोक के पाव भागों में वातवलयों का क्षेत्रफल दक्षिणोत्तर दिशाबों में ऊष्यलोक के पारवं भागों में वागवलयों का क्षेत्रफळ १४८ १३८ लोकान में वातवलयों का क्षेत्रफल १३-१४. कोक में सम्मान होनस १५०-१५२ १४१-१४२ सिद्ध परमेष्ठी की जघन्य व उत्कृष्ठ अवगाहना १५२-१५३ १४३ सनाली का स्वरूप १५४ १४४-२०७ नरक १५४ -२०० असनाली के अघो भाग में स्थित परिवयां १४५ सातों नरकों के नाम सनप्रभा के तीन भाग १४४-१५८ घर भाग की १८ भूमियों के नाम शकरा आदि पृथ्वियों की मोटाई नरक पृध्वियों में स्थित पटलों व विक्षों का स्थान १५१ प्रत्येक नरक में बिलों की संख्या मरकों में उष्ण व शीत वेदना का विभाग १५३ नरकों में पटल इन्द्रक वणीबद्ध विलों की संख्या १५४-१५८ प्रमादि छह नरकों के इन्द्रक बिलों के नाम १५६ सातवे नरक के बिलों के नाम १५-१६२ प्रत्येक पृथिवी में प्रथम इन्द्रक बिल संबंधी चाट चार श्रेणीबद्ध मिलों के नाम प्रत्येक पृथिवी के प्रथम पटल के श्रेणीबद्ध बिलों की संख्या द्वारा अन्तिम पटल में । संख्या प्राप्त करने के लिये तथा अन्तिम पटल के बशीबद्ध बिलों की संख्या द्वारा प्रथम पटल में संख्या प्राप्त करने के लिये करण सूत्र श्रेणीबद्ध बिलों का प्रमाण निकालने के लिये करण सूत्र १६४ अम्प करण सूत्र के द्वारा श्रेणी बद्ध विकों का प्रमाल प्राप्त करने का विधान १६६ ११
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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