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त्रिलोकसा
पाया : ३२६ उपयुक्त माथा के उत्तराध में जो उत्कृष्ट अवगाहना कही है, उसे एकेन्द्रियों को उत्कृष्ट अवगाहना के साथ कहते हैं
गापार्थ :-साधिक हजार योजन, बारह योजन, शैन योजन, एक योजन और हजार योजन कम से कमल, शङ्ख, प्रम (चींटी), भ्रमर और महामरस्य के शरीर की उत्कृष्ट लम्बाई है ।। ३२५।।
विशेषार्थ :-केन्द्रयों में कमल के शरीर की उत्कृष्ट लम्बाई कुछ अधिक एक हजार योजन ( कुछ अधिक ८००० मील), द्वीन्द्रियों में शव की उत्कृष्ट लम्बाई १२ योजन (९६ मील), श्रीन्द्रियों में श्रेष्म ( चींटी ) की लम्बाई पौन ( ३ ) योजन अर्थात ३ कोश ( ६ मील ), चतुरिन्द्रियों में भ्रमर के शरीर की लम्बाई १ योजन ( ८ मील ) और पञ्चन्द्रियों में महामत्स्य के शारीर की उत्कृष्ट लम्बाई १००० योजन ( २००० मील ) प्रमाण होती है। अय तेषामेत्र व्यासोदयौ कथपति
वासिमि कमले संख महदमो चउपचचरणमिह गोम्ही । वासुदयो दिग्धमतद्दलमलिए तिपाददलं ।। ३२६ ।। व्यास एक कमले पाले मुखोदयौ चतुः पञ्चचरणं इह ग्रेष्मे ।
व्यासोदयो दीर्घाष्टमतद्दल मलौ त्रिपाद दलम ॥ ३२६ ॥ पासिगि । व्यासः एक योजनं कमालनाले तदाहुल्यं समवृत्तस्वासावदेव शमुखोक्यो पवारि पोजमानि एव भवन्ति घरखा। चतुर्षांशा योजमस्म । इह मे व्यासोक्यो दोध्या (३)मभागशीघषोडशभागो र भ्रमरे व्यासोरमो प्रयाचारणा योजनस्य दलं च पातामर्धयोगामित्यर्थः । "वासी तिगुणो परिहो" इत्याविना कम लस्य सर्वक्षेत्रफल ७५० मानयेत् ।। ३२६ ॥
इन्हीं उपयुक्त जीवों के शरीर को चौड़ाई और ऊंचाई कहते हैं !..
गाथार्थ :--कमल का न्यारा ( चौड़ाई ) एक योजन, राल का मुख व्यास और ऊंचाई श्रम से ४ योजन और सवा योजन, मंष्म ( चींटी ) का ध्यास और उदय क्रम से लम्बाई के आठवें भाग और सोलहवें भाग प्रमागा, तथा भ्रमर का व्यास और उदय क्रम से पोन योजन और अर्थ योजन प्रमाण है ।। ३२६ ।।
विशेषार्थ:-कमल नाल की चौड़ाई १ योजन ( ८ मील ) प्रमाण है, जो समान गोल आकार वाली है. अतः उसका बाहुल्य ( मोराई ) भी उतना ( १ यो० अर्थात् ८ मील) ही जानना । शङ्ख का मुख व्यास ४ योजन ( ३२ मील ) और ऊँचाई पचचरण अर्थात् सबा (१) योजन (१० मील)