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पाया । ३२१
ज्योतिर्लोकाधिकार
अथ स्थाननिर्देशेन समुद्रश्रयावस्थितमत्स्यानां देहावगाहनमाह -
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लवणदुर्ग तमुद्दे नदी हुब हिम्हि दीड व दुगुणं । दुगुणं पणसय दुगुणं मच्छे वासुदयमद्भकमं ।। ३२१ ।।
द्विकान्यसमुद्र नदीमुखोदषों दध्यं नव द्विगुणं । विपन्ये व्यासोदयो अर्धक्रमी ।। ३२१ ।।
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लव
लव लवरकालोकयोः पन्यसमुद्र व नवोप्रवेशमुखे उदधीच समुद्रमध्ये च यथासंख्यं लवगोवके मरस्यवैध्यं नवयोः सद्विगुणं १८ कालोद के तथोद्विगुणं १८ । ३६ स्वयम्भुरमले पतं ५०० तद्विगुणं १००० महस्वस्यासोदयो तत्तवर्षार्धक्रमो भवतः ॥ ३२१ ॥
अब स्थान का निर्देश करके तीन समुद्रों में रहने वाले मत्यों के शरीर को अवगाहना कहते हैं :
गायें - लवण समुद्र, कालोदक समुद्र और अन्तिम स्वयम्भूरमण समुद्रों के नदी मुख पर और मध्य में मत्स्यों के शरीर की लम्बाई क्रम से नव योजन और द्विगुणं अर्थात् अठारह योजन है । अठारह योजन और छत्तीस योजन है, तथा ५०० योजन और हजार योजन है । लम्बाई का अर्ध प्रमाण चौड़ाई (व्यास) और चौड़ाई के अर्थप्रमाण उदय ( ऊंचाई ) है ॥ ३२१ ।।
विशेषार्थ :- नदी प्रवेश करने वाले समुद्रतट को नदीमुख कहते हैं। लवण समुद्र, कालोदक समुद्र और स्वयंभूरमण समुद्रों में रहने वाले मत्स्यों के शरीर की अवगाहना :- लवण समुद्र के तट ( नदीमुख ) पर रहने वाले मत्स्यों के शरीर की लम्बाई ९ योजन ( ७२ मील), चौड़ाई ४३ योजन ( ३६ मील), और ऊंचाई २ योजन ( १८ मील) प्रमाण है, तथा लवण समुद्र के मध्य में रहने वाले मत्स्यों के शरीर को लम्बाई १८ योजन ( १४४ मील), चोड़ाई ९ योजन ( ७२ मील), और ऊंचाई ४३ योजन (३६ मील ) है |
लोक समुद्र के तट पर रहने वाले मत्स्यों के शरीर की लम्बाई १८ योजन ( १४४ मील ), चौड़ाई ९ योजन ( ७२ मील) और ऊंचाई ४३ योजन ( ३६ मोल ) है । इसी समुद्र के मध्य में रहने वाले मरस्यों की लम्बाई २६ योजन (२८० मील), चोड़ाई १८ योजन ( १४४ मील) और ऊंचाई ९ योजन ( ७२ मोल ) हैं ।
स्वयम्भूरमण समुद्र के तट पर रहने वाले मत्स्यों के शरीर की लम्बाई ५०० योजन (४००० मोल ), चौड़ाई २५० योजन (२००० मील) और ऊंचाई १२५ योजन (१००० मील ) है । इसी समुद्र के मध्य में रहने वाले मरस्यों के शरीर की लम्बाई १००० योजन ( ८००० मील ), चोड़ाई ५.०० योजन ( ४००० मोल ) और ऊँचाई २५० योजन ( २००० मील ) है |