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गाया ३१८-३१९
ज्योतिर्लोकाधिकार
बाहिरसई वलयच्या सूना चउगुणिवासहदा | इगिलगभजिदा जंबूममवलयखंडाणि | | ३१८ ।।
बाह्यसूची वलयभ्यासोना चतुगु रितेिष्टव्या सहता । एकवर्गमा जम्बूसमवलयखण्डानि ॥ ३१८ ॥
बाहिर । सतवाह्यसूची ५ ल, बलवध्यासो ( २ ) नाइल, चतुर्भुते (मल) व्यावहता २४ ल० ल० एक लक्ष वर्ग १ ल० स० भक्ता २४ जम्बूसमबलयखण्डानि एवं घातकीखण्डादिषु सर्वत्र प्राक्तमगाथापक विधानं ज्ञातव्यम् ॥ ३१८ ॥
३४
गवार्थ:- बाह्य सूची व्यास के प्रमाण में से वलयन्यास का प्रमाण घटा कर शेष प्रमाणु को चोगुने बलयव्यास से गुणित करने पर जो लब्ध प्राप्त हो उसमें एक लाख के वर्ग का भाग देने पर जम्बूद्वीप के प्रमाण बराबर गोल खण्डों का प्रमाण प्राप्त हो जाता है ।। ३१८ ॥
२६५
विशेषार्थ :- विवक्षित द्वीप या समुद्र को बाह्य सूची में से उसीके वलयव्यास का प्रमाण चटाकर चोगुने वलयध्यास से गुणित कर १ लाख के वर्ग का भाग देने पर उसी विवक्षित द्वीप या समुद्र के जम्बूद्वीप सदृश गोल खण्ड प्राप्त हो जाते हैं। जैसे :-- लवण समुद्र विवक्षित है। इसका बाह्य सूचीव्यास ५ लाख योजन और वळयव्यास दो लाख योजन है । ५ लाख - २ लाख ३ लाख योजन शेष रहे। चौगुना व्यास अर्थात् २४४८ लाख का गुणा करने पर ( ३३४८ ल ) = २४ लx ल अर्थात् चौबीस हजार करोड़ प्राप्त हुये। इसमें एक लाख के वर्ग (१ल x १३ ) - १० x अर्थात् एक हजार करोड़ का भाग देने पर (१४ खण्ड प्राप्त हो जाते है। अथवा ३ ला ला÷ १ लल) १ ला × १ ला (२४) २४ प्राप्त हुये । लवण समुद्र में जम्बूद्वीप सहा २४ खण्ड प्राप्त होते है । इसी प्रकार बातकी खण्ड आदि में सर्वत्र पूर्वोक्त ५ गायामों द्वारा कथित विधानानुसार ही खण्ड करना चाहिये |
२४ व ल
अमोदधीनां रसविशेषमाह -
वर्ण वारुणितियमिदि कालदुगंतिमसयंभुरमण मिदि । पचेयजलवादा अवसेसा होंति इच्छुरसा || ३१६ ।। लवणं वारुणित्रयमिति कालद्विकमन्तिमस्वयम्भूरमणमिति । प्रत्येकजलस्वादा अवशेषा भवन्ति इक्षुरसाः ॥ ३१९ ॥