SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६२ त्रिलोकसार गाथा । ३१५ समुद्र की स्थूल परिधि का प्रमाण हुआ। जम्बाप की सूक्ष्मपाराध ३१६२२७ यो० ३ कोश १२८ घ० १३३ अंगुल ४५ ला० लवणसमुद्र का सूची व्यास : १ लाख जम्बूदीप का व्यास=१५८११३८ योजन ३ कोश ६४० धनुष, २ हाथ और १९३ अंगुल लवण समुद्र की सूक्ष्म परिधि का प्रमाण प्राप्त हृमा । धातको स्पष्ट का सूची व्यास १३ ला है, अतः ३ ला १३ ला १ लाख = ३९ लाख घातकी म्वण्ट की स्थूल परिधि का प्रमाण हा 1 जम्बूद्वीप की सूक्ष्म परिधि ३१६२२७ यो०, ३ कोश. १२८ धनुष, १३३ अंगुल ४ १३ लाख (घातको खण्ड का सूची व्यास ): १ लाख जम्बद्वीप का व्यास ४११०६६. योजन ३ कोश १६६५ धनुष ३ हाथ और ७, अंगुल घातको खण की सूक्ष्म परिधि का प्रमाण प्राप्त हुआ। इदानीमुभयक्षेत्रफलमानयति अंताइइजोगं कंदद्ध गुणित्त दुप्पडि किच्चा। तिगुण दमकणिगुणं बादरसुहमं फलं वलये ।।३१५।। प्रतादिसूचियोग रुद्रार्धेन गुणयित्वा द्विः प्रति छत्वा । त्रिगुणं दशकरणि पुग्णं बादरसूक्ष्मं फलं बलये ॥ ३१५ ॥ - अंताइ । लबरणमालाविसूच्योः ५ ल० १ ल. योगं ६ ल० जनार्धन १ ल. गुणयिस्वा ६ ल० ल. द्विप्रति कृत्वा ६ ल. ल., ६ ल० ल०, एक विगुणितं १८ ल. ल०, अपरं दशकररिणगुरिगत चेत ६ ल. ल.६ ल० स० १ बावरसूक्ष्मकले भवतः । स्थूल १८ ल. ल. सूक्ष्म १८६७३६६५६६१० घलएवृत्त क्षेत्रे ॥ ३१५ ॥ स्थूक और सूक्ष्म क्षेत्रफल लाने के लिए करण सत्र :--- गाथार्थ :-अन्त मची और मादि सची को जोड कर अधरुन्द्रन्यास से गुणित करने पर जो लब्ध प्राप्त हो उसे दो जगह स्थापित कर एक स्थान के प्रमाण को तिगुना करने से बादर क्षेत्रफल का प्रमाण प्राप्त होता है, तथा दूसरे स्थान के प्रमाण का वर्ग कर जो लक्ष्य प्राप्त हो उसको दश से गुणित कर गुणनफल का वर्गमूल निकालने पर जो लब्ध प्राप्त होता है वह सूक्ष्म क्षेत्रफल का प्रमाण है ।। ३१५ ।। विशेषाम् :-लवण समुद्र की अन्तसूची पति बाह्य सपोव्यास ५ लाख योजन है, और बादि सूची अर्थात् अम्यन्तर सत्री व्यास १ लाख योजन है, इन दोनों का जोड़ (५१-६ लाख योजन हुआ । लवण समुद्र का सन्द्रव्यास दो लाख योजन का है, इसका आधा { २x६)=१ लाख योजन हुआ। इस १ लाख मे ६ लाख को गुरिणत करने पर ( ६ लाख १ लाख)-६ लाख लाख
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy