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________________ गाथा: ३११ ज्योतिलोकाधिकार २५३ योजनं कृत्वा १८७५० मेलयेत् ७९०५६९३७५. भव पुनर्वण्डलक्षणसूक्ष्मपरिषि १२८ सेमव २५००० संगुष्य ३२००००० प्रष्टसहस्रभागेन योजनं कृत्वा ४०० मेलयेव ७६०५६६४१५० मंगुललाएं सूकम्परिधि १३ई समच्छेवनान्योन्यं मेलपिबा वाम्यां सियंगपतितपञ्चविंशतितहरण २५०० गुणमित्या ३३७५०० तस्मिन् कोषांगुलेन १९२००० भक्त लामिकक्रोशो भवति । एतरसव जम्बूद्वीपस्य सूक्ष्मक्षेत्रफल स्थाव। एवमेव सर्वेषो दोपसमुदाणां च स्थूलसूक्ष्मक्षेत्रफले चानेतध्ये ॥ ३११ ॥ पूर्वोक्त सुचीव्यास का आश्रय करके उस उस क्षेत्र की बादर सूक्ष्म परिधि और बादर सूक्ष्म क्षेत्रफल प्राप्त करने के लिए करण सूत्र कहते हैं: ___ गाथाभ :-चादर परिधि, व्यास की निगुनी होती है। न्यास का वर्ग कर उसको दश से मुणित करने पर जो लब्ध प्राप्त हो उसका वर्गमूल निकालना चाहिए। वर्गमूल स्वरूप प्राप्त अंक ही सूक्ष्मपरिधि का प्रमाण है। बादर परिधि को बाह्य सूची व्यास के चोथाई (1) भाग से गुरिणत करने पर बादर क्षेत्रफल होता है, और सूक्ष्म परिधि को बाह्य सूची व्यास के चौथाई भाग से गुणित करने पर सूक्ष्म क्षेत्रफल होता है ।। ३११ ॥ विशेषाय :-बादर परिधि. व्यास की तिगुनी होती है। जम्बूद्वीप का व्यास एक लाख योजन प्रमाण है, अतः १ लाख ४३ = ३ लाख जम्बूद्वीप की बादर परिधि का प्रमाण है । सूक्ष्म परिधि :-व्यास का वर्ग कर दश से गुणित करना, तथा उसका वर्गमूल निकालना जो लब्ध प्रा हो वही सूक्ष्म परिधि का प्रमारण है । जैसे:-जम्बुद्वीप का ध्यास १ लाख योजन है, अतः १ ला.'- एक हजार करोड़ वर्ग योजन अर्थात् १००.००x१०००००-१००००००००० एक हजार करोड़ या दा अरब वर्ग योजन हुआ। इस एक हजार करोड़ योजन में १० का गुणा करने पर (१०००००००००० x १० = १००००००००००० दश हजार करोड़ ) अथवा एक खरब वर्ग योजन प्रार हुआ। इस एक खरब वर्ग योजन का वर्गमूल निकालने पर ३१६१२७ योजन प्राप्त हुए, और ४८४४७१ योजन शेष रह । इनको चार से गुणित करने पर ( ४८४४७१४४)=१९५७८८४ कोश प्राप्त हुए इसमें पूर्व भागहार का भाग देने पर (१९३७८८४६३२४५४) =३ कोश प्राप्त हुए और४०५२२ शेष रहे। इन ४०५२२ को २००० से गुणित करने पर ( ४०५२२४२०००)=८१.४४००० धनुष या दण्ड प्राप्त हुए । इनमें पूर्वोक्त भागहार का भाग देने पर (१.४४००. ६३२४५४ )=१२८ दण्ड लब्ध आया और ८६८८८ धनुष शेष रहे। इन ८९८८८ को चार से गुणा करने पर ( ८६८६x४)३५९५५२ हाथ प्राप्त हुए। इनमें पूर्वोक्त भागहार का भाग नहीं जाता, अतः २४ का गुणा करने पर { ३५९५५२ ४२४ )=८६२९२४८ अंगुल हए । इनमें पूर्वोक्त भागहार का भाग देने पर ( ८६२९२४८ ६३२४५४ )=१३ अंगुल हुए और ४००३४६ अंगुल अवशेष रहे। इन ४०७३४६ अंगुल भाज्य को ३१६२२७ संख्या मे अपवर्तित करने पर साधिक एक अङ्क पाता है और ६३२४५४ भाजक को
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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