SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५.८ त्रिलोकसार गाचा । ३११ अस्पश्वर सुचीव्यास होता है, उस अभ्यन्तर सूची में दोनों दिशा सम्बन्धी वलयव्यास अथवा दुगुना वलय व्यास मिलाने से बाह्य सूची का प्रमाण होता है, इसीलिये विवक्षित वलयव्यास के चौगुने में से तीन लाख योजन घटा देने पर बाह्य सूचीत होता है आचार्य का ऐसा अभिप्राय है । अर्थात् अभ्यन्तर सूची ( २४ वलयन्यास - ३ ला० + २ बलयव्यास, बाह्य सूची व्यास के बराबर है । अथवा ४ x वलय व्यास - ३ लाख बाह्य सूचोज्याम जैसे :- कालोदधि का वलयच्यास ८ लाख योजन है। इसको दो से गुणित करने पर ( २ ) = १६ लाख प्राप्त हुये, मत: १६ ला०- ३ ला०- १३ लाख फालोदधि का अभ्यन्तर सूची व्याम हुआ । ८ लाख ४३ लाख = २४ लाख - ३ला० = २१ला• कालोदधि का मध्यम सूची ब्यास हुआ और ८ लाख × ४ लाख = ३२ लाख - ३ला० = २९लाख कालोदधि का बाह्य सूची व्यास हुआ। अभ्यन्तर, मध्यम और बाह्य परिधि का चित्रण अथोक्तसू दोश्यासमाश्रित्य तत्त क्षेत्रवाद र सूक्ष्मपरिधि तत्तद्वाद रसूक्ष्मक्षेत्रफलं चानयति तिगुणियवासं परिही दद्दगुणवित्थारवग्गमूलं च । परिद्दिदवासतुरियं चादर सुहूमं च खेत्तफलं ।। ३११ ।। त्रिगुणितव्यासः परिधिः दशगुण विस्तारवर्गमूले च परिधितव्यामतुरीयं बादरं सूक्ष्मं च क्षेत्रफलम् ॥ ३११ ।। १ x १ x१० सिलिय । त्रियुपिलध्यासो वावरपरिषिः ३ ल० वशगुणविस्तारवर्गः तस्मिन् मूले गृहीते सूक्ष्मपरिषिः योजन ३१६२२७ तच्छेष योजनभागं ४८४४७१ चतुभिः संगुष्य कोश कृत्या १९३७८८४ पूर्वमाहारेण ६३२४५४ भागे कृते हो० ३रकोश शेषं ४०५२२ सहस्रमेन २००० संगुष्प वण्डान् विधाय ८१०४४००० प्रातन भागहारेण भक्त तस्मिन् वण्डाः स्युः १२८ तद्दण्यशेषं चतुभिः हस्ते कृते ३५१५५२ भागाभावास चतुविशश्वंतुसं कृत्वा ५६२९२४८ प्राक्तन हारे भक्त तस्मिन् गुलानि स्युः १३ सवंगुलशेषं ४०७३४६ यावद्रभागेन प्रपर्यात साबिक साव मागेत समारोप ६३२४५४ प्रत्यपवर्त्यते चेत् द्वे भवतः । एवं सति साधिका भवति । तत् योजनादिकं सर्व + सूक्ष्मपरिधिः स्थूलपरिषिता ३ ल० ग्यास १ ल० चतुमशिन २५००० हतो ७५०००००००० जम्बूद्वीपस्य बादरक्षेत्रफलं स्यात् । इवानों योजनरूपसूक्ष्मपरिधि ३१६२२७ व्यासचतुर्थांशेन २५००० गुणयित्वा ७६०५६७५००० प्रत्रंव कोशलक्षएसूक्ष्मपरिषि क्रो० ३ सेमेव २५००० संगुण्य ७५००० चतुर्भागित : : 4 I ! 1 1 |
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy