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________________ पाथा : ३१. ज्योतिर्लोकाधिकार अर्वाचीनानां द्वीपसमुदाणा उभयविक्सअनिलवलपव्यासयुतेः सकाशात त्रिलक्षाधिको यतस्तत: विलक्षोन: उभयदिवस अनितो। विवक्षितवलयम्पास: प्रम्बसरसूचीप्रमाण मित्यभिप्रायः । विक्षितवलयव्यासं त्रिप्तगुणं कृत्वा तत्र लक्षत्रये शोषिते मध्यमसूचीप्रमाणं भवति । तथाहि। विवक्षितस्य दीपस्य समुद्रस्य वा वलयच्यासो द्विगुणितस्त्रिलोनश्चेत् सवा सदभ्यन्तरसूचोप्रमाणं भवति यतस्तत: कारणाव स्मिनभ्यन्तरसूचीप्रमाणे विवक्षिसयलयब्यासमध्यात्तस्य विदयगतस्य विषक्षितवलयव्यासप्रमाणस्याम्यधिकत्वात् मध्यमसूचीप्रमाणं त्रिगुणितविलक्षोनविवक्षितवलपम्यासप्रमिसमिति भावः । विषक्षितवलयव्यासं चतुर संगुणं कृत्वा पत्र लक्षत्रये शोषिते वाह्यसूचीप्रमाणं भवति । सपाहि । यतो निगुशिसत्रिलोनविवक्षितवलयव्यासप्रमिते प्रम्यन्तरसूचीप्रमाणे विवक्षितवलयन्यासस्य बिग्यासस्य प्रक्षेपणात बाह्यसूत्रीप्रमाणमुत्पद्यते ततः कारणाद पतुरिणतत्रिलक्षोनविवक्षितषलमपासप्रमिता बाह्यसूचीत्याचार्याभिप्रायः ॥ ३१० ॥ अभ्यन्तर मध्य और गाह सूजी प्राप्त करने के लिए काम :-.. गाथार्य :-लवण समुद्रादि द्वीप समुद्रों के घलय व्यास को दो, तीन और चार से गुणित करने पर जो जो लब्ध प्राप्त हो उसमें से तीन तीन लाग्न घटा देने पर जो जो अवशेष रहे वही कम से सम्यन्तर, मध्य और बाह्य सूची के व्यास का प्रमाण होता है, ऐसा प्राचार्य कहते हैं ।। ३१० ॥ विशेषार्ष:-लवरण समुद्रादि में से जिस द्वीप या समुद्र का सूचीव्यास ज्ञात करना इश हो उस के वलयव्यास को दो से गुणित कर प्राप्त लब्ध राशि में से ३ लाख घटाने पर मभ्यन्तर सूचीव्यास का प्रमाग प्राप्त हो माना है। विवक्षित द्वीप या समुद्र के बीच में, विवक्षित द्वीप या समुद्र से पूर्ववर्ती जितने भी द्वीप या समुद्र हैं, उन सबके दोनों ओर के वलयच्यासों को जोड़ने से जो प्रमाण प्राप्त होता है, उससे विवक्षित दीप या समुद्र का दोनों ओर का वलयव्यास तीन लाख योजन अधिक होता है, इसलिये दोनों ओर के विवक्षित वलयन्यास में से तीन लाख योजन कम करने से अम्पान्तर सुचीन्यास का प्रमाण प्राप्त हो जाता है। विवक्षित वलयव्यास को तीन से गुरिगत वर तीन लाख घटाने पर मध्यम सूचीव्यास का प्रमाण प्राप्त होता है, क्योंकि विवक्षित द्वीप या समुद्र के वलयव्यास को दुगुणा करके तीन योजन घटाने से अभ्यन्तर सूची व्यास होता है, उस अभ्यन्तर सूचीव्यास में दोनों दिशाओं के विवक्षित बलयब्यास के अधं प्रधं भाग को मिलाने से एक ओर का सम्पूर्ण वलयल्यास अधिक हुआ, अतः विवक्षित वलयव्यास को तिगुना करने पर जो लब्ध प्राप्त हो उसमें से ३ ला० योजन घटा देने पर विवक्षित मध्य चलयभ्यास का प्रमाण प्राप्त हो जाता है। विवक्षित वलयव्यास को चार से गुणित कर तीन लाख योजन घटा देने पर बाह्य सूचीव्यास का प्रमाण प्राप्त होता है । तथा-विवक्षित वलयभ्यास के दुगुने में से तीन लाख यो घटा देने पर
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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