________________
२५६
त्रिलोकसाथ
गाथा ११०
प्राप्त हो जाता है। इसीको मन में रख कर
करने पर उस उस इष्ट स्थान का वलय व्यास
गाथा में "ऊणपदमिद दुगसंवगे" ऐसा कहा गया है।
सूचीव्यास प्राप्त करने के लिये वासना :
६ष्ट द्वीप या समुद्र के वलय व्यास को दुगुना करने से दोनों ओर का सम्मिलित वलय व्यास प्राप्त होता है । जैसे— कालोदधि के वलयष्यास ८ को द्विगुणित करने पर दोनों ओर का वलयव्यास ८x२= १६ लाख योजन प्राप्त होता है। इष्ट द्वीप या समुद्र से पूर्ववर्ती द्वीप या समुद्र के दोनों ओर के वलय-व्यास को प्राप्त करने के लिये उनका वलय व्यास भी दूना करना चाहिये। जैसे— कालोदधि से पूर्ववर्ती को खण्ड के या योजन का ना ४x२=८ लाख योजन ( दोनों ओर का वलयव्यास ) होगा। इसी प्रकार लवण समुद्र का दोनों ओर का वलयव्यास २९२ - ४ लाख योजन होगा। जम्बू द्वीप सबके बीच में है, उसके दो दिशाओं ( दो ओर के वलय व्यासों ) का अभाव है, श्रतः उसका व्यास १ लाख योजन ग्रहण करना चाहिये। इसके व्यास को दो से गुणित नहीं किया गया। दूसरे स्थान पर शून्य (०) रखना प्रातः कालोदधि के दोनों छोर तक का सूचीध्यास इस प्रकार है - १६ला० +९ला० + ४ला०++ १० = २६ ला योजन हुआ। द्वितीय स्थान पर शून्य के स्थानीय २ लाख ऋण रखना चाहिये, ऐसा करने से एक अधिक गन्न प्रमाण स्थान हो जाते है । ऐसा विचार कर गाथा में "हवाहि पद दुगंसवगे" अर्थात् एक अधिक गच्छ प्रमाण दो के अड़ों को परस्पर गुणा करना चाहिये ऐसा कहा गया है । "पदमेते गुग्गु मारे" इस गाथा २३१ के गुण सङ्कलन सूत्रानुसार, एक अधिक गच्छ प्रमाण दो के अङ्कों को परस्पर गुग्गा करने से जो राशि उत्पन्न हो उसमें से एक तथा पूर्व में ऋणरूप से रखे हुये २ अर्थात १ला० + २ला० = १ लाख को कम करना चाहिये । ऐसा निश्चय करके गाथा में "तिलवखविहीगां" अर्थात् तीन लाख कम करना ऐसा कहा गया है ।
उपयुक्त प्रकिया करने से विवक्षित द्वीप या समुद्र का सूची व्यास
| प्राप्त हो जाता है ।
तथाभ्यन्तरमध्यमाह्मसूच्यानयने द्ददं करणसूत्रम्-
लवणादीणं वासं दुगतिमदुगुर्ण तिलक्खूणं । बादिममज्झिमबाहिरम्हसि भणति भादरिया || ३१० ॥ लवणादीर्ना व्यासं द्विकफि चतुः सङ्गणं त्रिलक्षोनम् । मादिममध्यमासूची इति भरान्ति आचार्याः ॥ ३१० ॥
लवरा । लवण समुद्रादीनां मध्ये इष्टस्य द्वीपस्य समुद्रस्य वा वलयव्या द्विसङ्ग गं कृत्वा तत्र
लक्षये शोषिते पम्यम्स र सूचीप्रमाणं भवति । तथाहि । विवक्षित वलय यास
उभयविषसमनितः