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गाथा सं.
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विषय द्विरूप घनधारा में अन्तिम स्थान और उसका कारण द्विरूप धनाधन धारा के कथन में लोक, तेजस्कायिक जीव, तेजस्काय-स्थिति, अवधिज्ञान का उत्कृष्ट क्षेत्र सपा इनको गुणकार पालाका, वगंशलाका, पच्छेद, प्रथम मूल का कथन
७४. विरूप धनाधन पारा में स्थिति बन्ध कषाय परिणाम स्थान, अनुभागबन्धाध्यवसायस्थान, निगोद शरीरों को उत्कृष्ट सख्या, निगोद काय स्थिति, सर्वोत्कृष्ट अविभाग प्रतिच्छेद का प्रमाण तथा इनकी वगं गलाका. अच्छेव, वर्गमून ८१ द्विरूप वगंधारा के स्थान को परस्पर । वार गुणा करने से द्विरूप-नाधन धारा का स्थान होता है। द्विरूप घनाघन धारा में सर्वोत्कृष्ट योग के उस्कृष्ट अविभाग प्रतिच्छेदों के प्रमाण से अनन्त स्थान पर जाकर केवलज्ञान के चतुर्थ वर्गमूल का धनाधन अन्तिम स्थान है । समस्त स्थानों का प्रमाण चार कम केवलज्ञान की वर्गशलाकाओं के बरार है।
८४-८५ चौदह धाराओं का विस्तृतस्वरूप वृहदधारापरिकम शास्त्र में है।
उपमा प्रमाण उपमा प्रमाण आठ प्रकार का है-पल्य, सागर, सूच्यंगुल, प्रतरांगुल, घनांगुल, जगईणी, अगस्पतर, लोक व्यवहार, उदार और बड़ा के भेद से पल्य तीन प्रकार का है पल्य का प्रमाण प्राप्त करने का विधान
5७-१५ परिधि व क्षेत्रफ का करण सूत्र व वासना पल्य ( गड्ड ) में रोमों की संख्या ध्यत्र हार पल्य के समयों का प्रमाण उद्धार पल्य का काख छापल्य का काल
८४-१५ सागरोपम का काल सागरोपम काल की सिद्धि सागर में पल्यों के प्रमाण की सिद्धि गुणाकार और गुण्यमान इन दोनों के अर्घच्छेदों को जोड़ने से ला राशि के अर्घच्छे होते हैं। सागर को वर्गशलाका नहीं है
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