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________________ पाषा स• २६ ******** ० ६१ ६२ ६३ ६४ ६५ ६६ ६० ६८ १६ ७. ७१ x ७३ ७५ ७६ विषय [ ३६ ] पृष्ठ सं० ५३ ५४ ५५-१६ 명 अकृतिधारा का स्वरूप धनधारा का स्वरूप अवनधारा का स्वरूप कृतिमातृकधारा ( वर्गमा बारा) का स्वरूप व स्थान वर्ग ( अकृति ) मातृका धारा मातृक बारा अवन मास धारा द्विरूप वगंधारा जघन्य परीता सख्यात की वर्ग शलाका, अर्धच्छेद, प्रथम वर्गमूल तथा रानि आवली, प्रतरावली दिरूप वर्गधारा में श्रद्धापल्य की वर्गशलाका अर्धच्छेद, प्रथम वर्गमूल, क्ल्य, सूच्यंगुल प्रतरांगुल, जगत् श्र ेणी का प्रथम धनमूल ६१ द्विरूप वर्गधारा में जघन्य परीतानन्त की वर्गशलाका, अर्धच्छेद, प्रथम वर्गमूल, जघन्यपरीतानन्त, अधन्य युक्तानन्त, लघन्य अनन्तानन्त जीव, पुद्गल, काल, आकाशणी, आकाश पत द्विरूप वगंधारा धर्माधर्म दृश्य के मगुरुलघु गुगा के अविभाग प्रतिच्छेद और एक जीव के अगुरुलघुगुण के अविभाग प्रतिच्छेद, जयन्य पर्याय नामक श्रुतज्ञान के अविभाग प्रतिच्छेव विरूप वर्गधारा में जधम्म क्षायिक सम्यगश्व के विभाग प्रतिच्छेद तथा केवलज्ञान की वर्गशलाका, अर्धच्छेद, वर्गमूल प्राप्त होते हैं द्विरूप वर्गद्वारा में केवलज्ञान अर्थात् उत्कृष्ट क्षायिक लब्धि के अविभाग प्रतिच्छेद द्विरूप वर्षधारा के समस्त स्थान " ५. ३८ Xe ५८ ६२ ६४ E ६५ जो राशि विरलन और देय के विधान से जिस पारा में उत्पन्न होती है उस धारा में उसकी वर्गशलाका व अच्छेद नहीं पाये जाते हैं। यह नियम द्विप वगंधारा, द्विरूप धनवारा व द्विरूप घनाघन बारा में लागू होता है। ६९ द्विरूप वर्गद्वारा द्विरूप घनधारा, द्विरूप घनाघन धाराओं में वर्ग से ऊपर के वर्ण में अच्छे दुगुने दुगुने और परस्थान में तिगुने तिगुने होते हैं शलाकाओं की अधिक्यता एवं सादृश्यता का विधान वर्ग पालाका और अव का स्वरूप द्विरूप धनधारा का प ६५ ६० बक ..
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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