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गाथा सं०
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. ३६-३७
४८६-१९
लफल
तथा उसकी सिद्धि
तिल आदि वस्तुओं को शिक्षा की ऊंचाई परिधि के ग्यारहवें चाय होती है ।
प्रथम अनवस्था कुण्ड की शिखा में मरसों का प्रमाण
प्रथम अनवस्था कृणा और शिखा इन दोनों का सम्मिलित एनफल
कुण्ड व शिक्षा इन दोनों में सरसों का प्रमाण
द्वितीय अनवस्था कुण्ड का प्रमाण
द्वितीय आदि अनवस्था कुण्डों का प्रमाण लाने के लिये गच्छ का प्रमाण
शलाका कुण्ड में सरसों डालने का विधान
प्रतिशलाका कुण्ड में सरसों डालने का विधान
महाशलाका कुण्ड भरने का विधान
अन्तिम अवस्था कुण्ड में जघन्य परीतासंख्यात सरसों
मध्यम परीता संख्यात, उत्कृष्ट परीतासंख्यात अघस्य युक्तासंख्यात प्रमाण पावली मध्यम युक्त संख्यात, उत्कृष्ट युक्तासंख्यात, जघन्य असंख्याता संख्यात शलाका त्रय निष्ठापन के द्वारा जघन्य परीतानन्त की उत्पत्ति
३८-४४
४६-४७ उत्कृष्ट परीमानत, अघम्य युक्तानन्त प्रमाण अभव्य राशि, उत्कृष्ट युक्तानन्त, बघस्य अनन्तानन्त, प्रतिच्छेद
उत्कृषु अनन्तानन्त व केवलज्ञान के अविभाग प्रतिच्छेद
श्रतज्ञान का विषय संस्थात भवविज्ञान का विषय वसंक्यात, केवलज्ञान का
विषय बनात है।
५.२
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विषय
धनाद के धन का शिवा का घनफळ घनाकार के बनफल से होता है। प्रथम अनवस्था कुण्ड में गोकसरसों का प्रमाण
गो गेंद आदि वस्तु का घनफल होता है तथा
चौदह भारा
सबंधारा आदि १४ भाषाओं के नाम
सबंधारा का स्वरूप
समधारा का स्वरूप
विषमधारा
समधारा व विषमधारा के स्थानों का प्रमाण बोर जनको प्राप्त करने की विभि
कृतिधारा का स्वरूप
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