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गाथा। २०६-२८७
व्यन्तरलोकाधिकार तस्सुवरि पासादो पणहतरितुंपमो सुधम्मसहा । पणकदिदल तद्दल णव दीहरवासुदय कोस' ओमाहा ।।२८६॥
तस्योपरि प्रासादः पञ्चसापतितुङ्गः सुधर्मसभा।
पञ्चकृतिदलं तद्दल नव दीर्घव्यासोदयाः कोशः अवगाहः ॥२८६॥ तस्सुव । तस्योपरि प्रासावः पञ्चसप्ततितुङ्गः स एष सुधर्मसमा इत्याख्यायते । पञ्चतिरलं ३५ तहल १५२६ एते यासंख्यं वीर्घव्यासोश्या: तबगाढः कुट्टिमा भूमिः एककोशः ॥२६॥
अब द्वारों के ऊपर स्थित प्रासादों के स्वरूप का निरूपण करते हैं
गाणार्थ:-द्वार के ऊपर पचहत्तर (७५) योजन ऊचे प्रासाद हैं। इनके भीतर सुधर्मा नामा सभा है जिसको दीर्घता ( लम्बाई ), व्यास ( चौड़ाई ) और उदय ( ऊंचाई ) कमशः पांच को कृति ( वर्ग ) का आधा, लम्बाई का आषा और ६ योजन प्रमाण है । इस सभा का अवगाढ़ ( अधिष्ठान ) एक कोस है 11२८६॥
विशेषाप:- द्वार के ऊपर ७५ योजन ऊँचे प्रासाद हैं । प्रासादों के भीतर सुधर्मा नामा सभा है जो पांच की कृति की बाधी ( ५४५-२० ) अर्थात साढ़े बारह ( १२५ ) योजन लम्बी है । लम्बाई से
आधी ( ११४३ ) अर्थात् सवा छह (६३) योजन चौड़ी और ई योजन ऊँची है । इसकी नींव भूमि में 'एक कोस नीचे तक स्थित है। मथ तप्रासादस्य द्वारोदयादीनिरूपयति
तिस्से दारुदो दुगहगि वासो दक्खिणुचरिंदाणं । सम्वेसिं गगराणं पायारादीणि सरिसाणि ||२८७||
तस्या द्वारोदयः द्विकमेकं व्यासः दक्षिणोत्तरेन्द्राणाम् ।
सर्वेषां नगराणां प्राकारादीनि सदृशानि ॥२८॥ तिरसे । तस्याः सुधर्मसभाया: चारोषयः नियोजन एकपोजमण्यासः । दक्षिणोत्तरेचा सबंधी मारा प्राकारादीनि सहशानि ।।२८७॥
अब उन प्रासादों के द्वारों की ऊंचाई आदि का निरूपण करते हैं
गाथा:- उस सुधर्मा सभा के द्वार का उदय ( ऊँचाई ) दो योजन और व्यास ( चौड़ाई ) एक योजन है । दक्षिणेन्द्र और उत्तरेन्द्र इन समी इन्द्रों के नगरों के प्राकारादिकों का प्रमाण समान । ही होता है ।।२८॥
१ कोस द गाढो (प.)।