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________________ २४२ त्रिलोकसार पापा ! २८५ हैं। मध्य के नगर का नाम इन्द्र के नाम से अंकित होता है तथा पूर्वादि दिशाओं में क्रमशः नाम के अन्त में प्रभ, कान्त, आवतं और मध्य जुड़े होते हैं, जैसे-- इन्द्रनाम मध्यनगर पूर्वदिशा दक्षिण दिशा | पश्चिम दिशा | उत्तर दिशा १ किम्पुरुष २ किन्नर किमुरुपपुर । किम्पुरुषप्रभ किन्नरपुर किन्नरप्रभ किम्पुरुषकान्त | किम्पुरुषावर्त | किम्पुरुषामध्य किन्नरकान्त | किनरावर्त । किन्नरमध्य इसी प्रकार शेष चौदह इन्द्रों के नगर भी जानना चाहिए । इन नगरों का आयाम जम्बूद्वीप के समान है। अथ तश्नगरप्राकारद्वारयोमदयादिभेदमा तपायारुदयतियं पणहत्तरिपण्णवीसपंचदलं । दारुदभो विन्धारी पंचधणद्धं तदद्धं च ।।२८५।। तत्प्राकारोदयत्रयं पञ्चसप्ततिपञ्चविंशतिपञ्चदळम् । द्वारोदयो विस्तारः पञ्चघनाधं तदधं च ॥२८५।। सप्पाया। तत्प्राकारोक्यत्रयं पञ्चसप्ततिवलं १५ पञ्चविंशतिवलं ३५ पञ्चातं तदारोक्यो विस्तारपत्र पञ्चधना १२५ तव ध१॥२५॥ अब उन नगरों के कोट तथा दरवाजों की ऊंचाई आदि कहते हैं गाथार्थ:-उन नगरों के कोट की ऊंचाई, चौडाई और मोटाई क्रमशः पचहत्तर (७५) पच्चीस (२५) और पांच (५) की आधी ग्राधी है। द्वार की ऊंचाई पांच के घन की आधी और चौड़ाई ऊंचाई से माधी है ॥२५॥ विशेषार्थ:-नगर के कोट की ऊंचाई पचहत्तर की आधी ( १५ ) अर्थात् साढ़े तीस योजन, चौड़ाई पच्चोस की आधी ( २५ ) अर्थात् साढ़े बारह योजन और मोटाई पाँच की आधी (2) अर्थात् हाई योजन है । इसी प्रकार द्वारों की ऊंचाई पाव के धन की आधी (५४५४५- १) अर्थात् माढ़े वासठ ( ६२३ ) योजन और चौड़ाई ऊंचाई को आधी ( १ ) अर्थात सवा इकतीस (३१) योजन है। अथ तदुपरिमप्रासादस्वरूप निरूपयति
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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