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________________ २४० त्रिलोकसार पाया : २-३ अथवा कक्षाएं हाथी | घोड़ा । पैदल _रथ गन्धवं । नृत्यकी बल प्रथम (२८... २८३०० २८००० २८००० २८००० २८००० २८.०० द्वितीय ५६००० | ५६००० ५६००० [५६००० | ५६००. ५६००० ५६००० तृतीय १९२००० चतुर्थ २२४००० २२४.०० पश्चम ११२००० २१२००० | ११२००० ११२०७० ११२००० २२४००० | २२४००० | २२४००० २२४००० | २२४०.० |४४८०.. |४४६००० . .. ४४८००० ४४८०.. ४८.०० ८९६००० | E९६०.०८६६०००८९६००० | | ८९६००० ८९६००० १७६२०००/ १७९२.०० १७९२०००५७६.२००० १७९२००० १७९२०००। ४४८.०० पष्ठ ६६०.. सहम १७९२००० योग ३५५६००० ३५५६००० ३५५६००० ३५५६००० ३५५६००० ३५५६... ३.५६००० सातों अनीकों का सवं धन २४८९२०. यह धन २५८६२... एक इन्द्र की अनीक का है । कुल इन्द्र सोलह हैं-सभी समान धन के स्वामी हैं अतः २४८९२००० ४ १६ = ३६८२७१००० सम्पूर्ण वमन्तर देवों की सेना का सर्वधन प्राप्त हुआ। चतुनिकाय रूप सम्पूर्ण देवों के प्रकोणक, आभियोग्य और किल्विष देव असंख्यात होते हैं। मतान्तर से इन देवों का प्रमागा निरूपण करने वाला उपदेश नष्ट हो चुका है। मथ व्यन्तरेन्द्रागा नगराश्रयद्वीपसंज्ञामाह-- मञ्जणकवजधाउकसुवण्णमणोसिलकवजाजदेसु । हिंगुलिके हरिदाले दीये भोम्भिदणयराणि ।।२८३।। मजनकवनधातुकसुवर्णमनः शिलबजरजतेषु । हिगुलिक हरिताले द्वीपे भीमेन्द्रनगराणि ॥२८३॥ मंगणक । छायामात्रमेवार्थः ॥२३॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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