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________________ गाथा : २८१-२५२ व्यन्तरलोकाधिकार सेनामहचरा मुज्जेड्डा सुग्गीवविमलमरुदेवा | सिरिदामा दासिरी सत्तमदेवो विसालखी || २८१ || सेना महत्तराः सुज्येष्ठः सुग्रीवविमलमरुदेवाः । श्रीदामा दामश्रीः सप्रमदेवो विशालाक्यः ॥ २८१ ॥ लेगा | वायामात्रमेवार्थः ॥ २८१ ॥ सात अनीक देवों के महत्तरों के नाम गाथार्थ:- हाथी आदि सात प्रकार की सेना के प्रधान देवों के नाम क्रमश: सुज्येष्ठ सुग्रीव. विमल, मरुदेव, श्रीदामा, दामश्री और विशाल है ॥२१॥ अथ तदानीकसंख्यामाह - अठ्ठावीसarti पढमं दुगुणं कमेण चरिमोचि । सदा सरिसा पण्णयादी असंखमिदा || २८२|| अष्टाविशसहस्राणि प्रथमं द्विगुणं क्रमेण चरमान्तम् । सर्वेन्द्राणां सद्दशः प्रकीर्णकादयः असंख्यमिताः ॥ २६२ ॥ २३६ पट्टाबीस । प्रष्टावितिः सहस्राणि प्रथमं प्रमाणं हमेसा द्विगुणं परमं यावत् । सर्वग्रा सहा: मानीसंख्याः चतुशिकायेषु प्रकोरांकावयः प्रसंख्यात मिताः ॥२६२॥ अनीक और प्रकीर्णकादि देवों की संख्या गाथा - प्रथम कक्ष अट्ठाईस हजार प्रमारा है तथा अन्त तक क्रमशः दूना ठूला प्रमाण प्राप्त होता है। अनीकों का प्रमाण समस्त व्यस्तर इन्द्रों के समान ही है। प्रकीएकाधिकों का प्रमाण संख्यान है || २८२ ।। विशेषार्थ:- गाथा २३१ के अनुसार जितना गच्छ का प्रमाण हो उतने स्थान में २ का अ रखकर परस्पर गुणा करने से जो लब्ध प्राप्त हो उसमें से एक (१) घटाकर दोष में एक (१) कम गुणकार का भाग देने पर जो लब्ध आवे, उसका मुख में गुणा कर देने से सङ्कलित धन का प्रमाण प्राप्त होता है । यहाँ पद प्रमाण ७ और मुख का प्रमारण २८००० है, अतः २८००० x || ८२४२४२४२ ३५५६०००, एक अनीक की सात कक्षाओं का प्रमाण करने पर ( ३५५६००० X ७ ) २४८६२००० मानों × २x२ x २ ) - १) - ( २ – १ ) ] प्राप्त हुआ। इसको सात (७) से गुणा अनीकों का प्रमाण प्राप्त होता है । न
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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