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त्रिलोकसाब
इंदसमा ह पहिंदा समाणुतसुरकखपरिसपरिमाणं । चडमोलसहस्सं पुण अट्टमयं विमदवकिमो || २७९ ।।
इन्द्रसमाः खलु प्रतीन्द्राः सामानिकतसुरक्षपारिषदप्रमाण । चतुः षोडशसहस्रं पुनरष्टशतं द्विशतवृद्धिक्रमः ॥ २७९ ॥
पाया: २७९-१८०
इंदसा | इन्द्रसमाः खलु प्रतीन्द्राः सामानिकतनुरक्षपारिषवप्रमाणं चतुः सहस्र सत्र पुनरशतं मध्यमवापरिषदोः द्विदृद्धिक्रमः ॥२७६॥
किम्पुरुषादि इन्द्रों के सामानिकादि देवों को संख्या कहते है
गायार्थः प्रतीन्द्र इन्द्र के सहश हैं अर्थात् एक इन्द्र के पास एक ही प्रतीन्द्र होता है। सामानिक देव चार हजार, तनुरक्षक सोलह हजार तथा पारिषद देव आठ सौ है, आगे दो दो सौ की वृद्धि होती गई है || २७६ ॥
विशेषार्थ:- प्रत्येक इन्द्र के परिवार में प्रतीन्द्र सामानिक, तनुरक्षक, तीनों पारिपद, मातों अनीक, प्रकीरंक और आभियोग्य देव होते हैं ।
एक इन्द्र के परिवार में प्रतोद्र एक ही होता है। सामाजिक देव ४०००, तनुरक्षक १६०००, आभ्यन्तरपारिषद देव ८०० मध्यपारिषद देव १००० तथा बाह्यपारिवद देव १२०० प्रमाण होते हैं।
अय तेषां सप्तानीकं कथयति-
कुंजरतुरयपदादीरगंधा यनवसति ।
सत्तेवर आणीया पत्तेयं सत सत कक्खजुदा ||२८० ।।
कुञ्जरतुरगपदातिरथगन्धवत्र नृत्य वृषभाविति ।
सप्तव अनीकाः प्रत्येक सप्त सप्त कक्षयुताः ||२०||
कुंजर | छायामात्रमेवार्थः ॥२८०
सातों अनीकों के नाम एवं भेद
गापार्थ:- हाथी, घोड़ा, पैदल, रथ, गन्धवं नृत्यकी और वृषभ - प्रत्येक इन्द्र की ये सात सात अनीक ( सेनाएं ) हैं तथा एक एक अतीक सात सात प्रकार की कक्षा एवं फौज से सहित होती है ।। २८० ॥
अथ तत्सेना महत्तरभेदमाह -