________________
२३६
त्रिलोकसार
पाथा: २७३-२७६
पिशाच ध्यन्तरदेवों के प्रकारादि
गाचा:- (१) कूष्माण्ड (२) राक्षस (३) यक्ष (४) सम्मोह (५) तारक (६) अशुचि (७) काल (८) महाकाल [९] शुचि (१०) सतालक (१११ देह (१२) महादेह (१३) तूष्णीक और (१४) प्रवचन, ये चौदह प्रकार के पिशाच व्यन्तर देव हैं। इनमें काल और महाकाल ये दो इद्र हैं। इनकी कमला और कमलप्रभा तथा उत्पला और मुदर्शना ये दो दो वल्लभा देवांगनाएँ हैं ॥२७१-२७२।। अथ पुनरिन्द्रसंज्ञाम व पृथगृहाति गाथाद्वये नाह
किंपुरुस किंणग मप्पुरुसमहापुरुसणाममा कमसो । महकायो मतिकायो गीतरती गीतयमणामा ।।२७३।। तो माणिपुण्णभद्दा भीममहामीमया सुरूवा प । पहिरूवी काल महाकालो भोम्मेसु जुगलिंदा ।।२७४।।
किम्पुरुषः किन्नरः सत्पुरुष:महापुझपनामा क्रमशः। महारायः नि . गोतरतिः गीतयशोनामा 1॥२७३।। ततो मारिणपूर्णभद्रो भीममहाभीमो सुरूपश्च ।
प्रतिरूपः कालः महाकाल: मोमेषु युगलेन्द्रा ||२७४।। किंपुरुस । छायामात्रमेवारीः ।
हो। ततो माणिभद्रः पूर्ण भाः भीमः महाभीमः सुरूपश्च प्रतिरूपः कालो महाकाल: एहे सर्वे मोमेषु युगलेना ॥२७॥
दो गाथाओं द्वारा पुनः इंद्रों के नाम पृथक से कहते हैं
गापार्श:--किम्रुप, किन्नर; सत्पुरुष, महापुरुषः महाकाय, अतिकाय; गीतरति, गीत यशा; मारिणभन, पूर्णभद्र; भीम, महाभीम; सरूप, प्रतिरूप और काल, महाकाल-ये व्यन्तरदेवों के क्रमशः एक एक कल के दो दो इन्द्र होते हैं ।।२७३-२७४।। मथ किम्पुरुषादीन्द्राणां गणिकामहत्तरीयाचतुष्टयेन कथयति---
मणिकामहत्तरीयो इंदं पडि पन्लदलठिदी दो हो। मधुरा मधुरालाका सुस्सर मउभासिणी कमसो ।।२७५।। पुरिसपिया घुकता सोमा पुंदरिमिणी य भोगक्खा । मोगवदी य भुजंगा भुजमपिया तो सुघोस विमलेति ।।२७६।।