SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३५ पाथा: २६६-२७२ ध्यन्तरलोकाधिकार भृदाणं तु सुरूपा पडिरूवा भूदउत्तमा तत्तो। पहिभूद' महाभूदा पहिलपणागासभूद इदि ॥२६९।। इंदा य सुपडिरूवा बन्लभिया तह य होदि रूवषदी । बहरूबा य सुमीमा सुमुहा य हचंति देवीयो ॥२७॥ भूतानां तु सुझपः प्रतिरूपः भूनोत्तमः ततः । प्रतिभूतः महाभुतः प्रतिछत्रः आकाश भून इति ।।२६६॥ इंद्री च सुप्रतिरूपी वलभिकाः तथा च भवन्ति रूपवती । बहरूपा च सुपीमा सुमुखा च भवन्ति दं ध्यः ।।२०।। मूदाएं । छायामात्रमेवार्थः ॥२६॥ इंचाची व सुरूपनतिरूपी तपोलिभिका सपा भवन्ति रूपवतो बहुरूपा च सुषीमा समुखा प एता वेम्पो भवन्ति ॥२७॥ भूत व्यन्तर देवों के प्रकारादि-- गापार्ग:-(१) सुरूः रतिरूप ३भूटोत्तम प्रतिभा () महाभूत (६) प्रतिछिन्न और (७) आकाराभूत-ये सात प्रकार के भूत ध्यन्तरदेव हैं । सुरूप और प्रतिरूप भूत व्यन्तर देवों के इन्द्र हैं। रूपवती और बहुरूपा तथा सुसीमा और सुमुखा-इनको ये दो दो वल्लभा देवांगनाएं हैं ॥२६९-२५ || मथ पिशाचाः चनुदंशधा भवन्ति, तेषां नामानि कथयति कुम्भंड रक्ख जक्खा संमोहो तारका मचोक्खा य । काल महकाल चोक्खा सुतालया देह महदेहा ।।२७१।। तुहिय परयणणामा इंदा तेसि तु कालमहकाला । कमलकमलप्पाहप्पलसुद रिसणा होति वल्लभिया ।।२७२।। कूष्माण्डो रक्षोयक्षः सम्मोहः तारकः अशुचिश्च । वाल: महाकाल: शुचि: सतालक: देहः महादेहः ॥२७॥ तूष्णीकः प्रवचननामा इन्द्रो तपा तु कास महाकालो। कमलाकमलप्रभोरमलासुदर्शना भवन्ति बहभिकाः । २७२।। कुभं । धायामात्रमेवार्थः ॥२७॥ तुहिय । तूष्णोकः प्रवचननामा १४ इन्नो तेषां तु कालमहाकाली कमला कमलप्रभा उत्पला सुदर्शन। एतास्तयोलभिकाः ।।३७२।।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy