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________________ त्रिलोकमार माथा । २६७-२६८ मह । अप मारिण मारांभोलभमनोभद्राः भागः सुभाष तथा सर्वभाः मानुषः पनपाल: सुरूपयक्षध ।।२६।। अक्छु । यक्षोत्तमो मनोहरनामा १२ सत्र मारिणभनपूर्णभद्राचिन्द्रौ । तयोर्वेभ्यः कुम्मा महपुत्रवेषो तारापुमरुत्तमा देवी ॥२६६३ यक्ष दवा के अवान्तर नामादि गाथा:-- (१) माणिभद्र (२) पूर्णभद्र (३) शैल भद्र (४) मनोभद्र (५) भद्रक (६) मुभद्र (७) सर्वभद्र (क) मानुष (९) धनपाल (१०) सरूपयक्ष (११) यक्षोत्तम और (१२) मनोहर-ये बारह प्रकार के यक्ष व्यन्तरदेव हैं। इनमें से मणिभद्र और पूर्णभद्र ये दो इन्द्र हैं। इनकी कुन्दा और बहुपुत्रा तथा तारा और उत्तमा ये दो दो वलभा देवांगनाए हैं ।१२६५-२६६।। मथ राक्षगाः सप्तविधा भवन्ति । तेषां भेदान कथयति'--- भीममहभीमविग्धविणायक तह उदकरक्खसा य तहा । रक्खसरक्खस तह बम्हरनखसा होति सत्तमया ।।२६७।। भीमो य महामीमो रक्खसइंदा हवंति बन्लभिया । पउमा वसुमित्नावि य स्यणड्ढा कणयपह देवी ।।२६८।। भीमो महाभीमः विघ्नविनायकः तथा उदकः राक्षसश्च तथा। राक्षस राक्षसः तथा या राक्षसः भवन्ति सप्तमकः ।।२६७।। भोमश्च महाभीमो राक्षमन्द्री भवतः वङ्गभिका। पद्मा ब पुमित्रापि च रत्नाड्या कनकप्रभा देवी ॥२६८।। भीम । छायामात्रमेवार्थ: ॥२६७।। भीमो । बालमिकाः तयोरिति शेषः । अन्यमायामात्रं ||२६८।। राक्षस व्यन्तरदं त्रों के अवान्तर भेदादि गावार्थ:-- (१) भीम (२) महाभीम (३) विघ्नविनायक (४) उदक (५) राक्षस (६) राक्षसराक्षस और (७) ब्रह्मराक्षस-ये राक्षस घ्यन्तरदेवों के प्रकार हैं। भीम ओर महाभीम राक्षसद वों के इन्द्र हैं । इनकी दो दो बल्लभा देवांगनाए क्रमशः पया और वसुमित्रा तपा रलाया और कनकप्रभा हैं ॥२६७-२६८॥ अथ भूताः समविधा भवन्ति, तेषां नामानि कथयति
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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