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________________ पाया । २६३-१६६ व्यभ्तरलोकाधिकार हाहा हू णारयतुंबुरुक कदंबवावकरयाय । महसर गीतरतीब य गीतयसा दवता दसमा ||२६३|| गीतरती गीतजसो गंधव्विदा हवंति वल्लमिया | सरसति सरसेणावि य दिणि वियदरिखिणादेवी ॥१२६४|| 9 ( 90 ) 1 हाहा हूहू नारद बुक कदम्बवासवारूपाश्च । महास्वरो गीत रतिः अपि च गीतयशा देवता दशमः ।।२६३॥ गीतरस: गोवा गन्धर्वेन्द्रौ भवतः वस्ल भिकाः । सरस्वती स्वरसेनापि च मन्दिनी प्रियदर्शनादेवी || २६४ ॥ हाहा । छायामात्रमेवार्थः ।। २६३ || गीतरसी। वल्लभकाः तयोरिति शेषः । सभ्यछायामानं ॥ २६४ ॥ गन्धवं व्यन्तरदेवों के अवान्तर नामादि- गावार्थ:- (१) हाहा (२) हूहू (३) नारद (४) नुम्बुरु (५) कदम्ब (६) वासव ( ७ ) महास्वर (८) गौतरति (६) गोतयशा और (१०) दैवत - ये दस भेद गन्धवं व्यन्तर देवों के हैं । गीतति और गीला ये दो प्रधान इन्द्र हैं। इनकी वल्लभा देवांगनाएँ क्रमशः सरस्वती और स्वरसेना तथा नन्दिनी और प्रियदर्शना है || २६३ - २६४।। अथ यक्षद्वादशधा कथयति' - मणिपुलोमा मदग्गा सुभदा य । तह सव्वमद्द माणूस घणपाल सुरूवजक्खा य ।। २६५ ।। जक्खुमा मनोहरणामा तह माणिपुण्णभहिंदा | कुंद बहुपुच देवी तारा पुण उसमा देवी || २६६॥ २३३ अमलिमतोभद्राः भद्रकः सुभद्रः च । तथा सर्वभद्रः मानुषः धनपालः सुरूययक्षश्च ॥ २६५ ॥ ॥ यक्षोत्तमो मनोहरनामा तत्र माभिन्द्रो । कुन्दा बहुपुत्रदेवी तारा पुनरुत्तमा देवी ॥ २६६॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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