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________________ २३२ त्रिलोकसारा पापा : २६१-१६२ पुरुसा । छायामात्रमेवार्थः ।।२५६n सप्पुस । सत्पुरुषमहापुरुषो किम्पुरुषेन्नौ । कमेण बलरिकाः रोहिणी नवमी देवो पूर्वन्तस्य ह्री पुष्पवती चेतरस्य ।।२६०॥ किम्पुरुष व्यन्तर देवों के नाम, इन्द्र और उनकी वल्लभाए गायार्थः-(१) पुरुष (२) पुरुषोत्तम (३) सत्पुरुष (४) महापुरुष (५) पुरुषप्रभ (६) अतिपुरुष ७) मरु (८) मरदव (६) मरुत्प्रभ (१०) यशस्वान-ये दस प्रकार के किम्पुरुष व्यन्तरदेव हैं। इनके सत्पुरुष और महापुरुष व दो इन है मिलनश: रोहिणी और नवमी तथा ह्री और पुष्पवती ये दो दो वल्लभा देवांगनाए हैं ॥२५९-९६०।। महोरगदशभेदंपति मुजगा भुजंगसाली महकायतिकाय खंधसाली य । मणहर असणिजवक्खा महसरगंभीरपियदरिसा ।।२६१।। महकायो भतिकायो महोरगदा हु भोग भोगवदी। इदरम्स पुप्फगंधी अणिदिता हॉति बम्लभिया ।।२६२।। भुजगः मुजंगशाली महाकायो अतिकायः स्फन्धशाली । मनोहरः अशनिज वामन्यः महेश्वर्यगम्भीर प्रियदथिनः ॥२६१॥ महाकायो अतिकायो महोरगेन्द्रो हि भोगा भोगवती। इतरस्य पुष्पगन्धी अनिदिता भवतः वरक्षभिके ||२६२॥ भुजगा। छायामात्रमेवाः । महकायो। महाकापोऽतिकायाचेति महोरणेनो हलु । भोपा भोगवती पूषस्य, इतरत्य पुष्पगन्धी प्रनिविता भवतः बल्लभिजे ॥२६॥ महोरग म्पन्तरदेवों के अवान्तर नामादि पाषा:--(१) भुजंग (२) भुजंगशाली (३) महाकाय (४) अतिकाय (५) स्फन्त्रणाली (0) मनोहर (७) प्रशनिजव (८) महेश्वर्य (९) गम्भीर और (१०) प्रियदर्शन, ये बस प्रकार के महोरग व्यन्तरदेव हैं । इनके इन्द्र महाकाय और अतिकाय हैं । इनकी क्रमशः भोगा और भोगवती तथा पुष्पगन्धी और अनिन्दिता ये दो दो वल्लभा देवांगनाएँ हैं ।।२६१-२६२॥ . (प.)। १ बर्मानाः (प.)।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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