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________________ वाचा । २५५-२५८-२५९-२६. म्यन्तरलोकाधिकार अथ तेषां संज्ञां षोडशगाथाभिनिरूपयति किंपुरिसकिंणराधि य हिंदयंगमगा प रूपपाली य । किंणरकिणरऽणिदित भणरम्मा किंणरुतमगा ॥२५७।। रतिपियजेट्टा इंदा किंपुरिसाकिणरवतं सा है। केतुमती रतिसेणा रतिप्पिया होति बन्लमिया ।।२५८|| किम्पुरुषभिन्न रावपि च हृदयङ्गमश्च रूपपाली च । किन्नरकिन्नरः अनिन्दितः मनोरमः किन्नरोत्तमः॥२५॥ रतिप्रियज्येष्ठौ इन्द्री किम्पुरुषकिन्नरी अवतंसा हि। केतुमती रतिसेना रतिप्रिया भवन्ति वल्लाभकाः ॥१५८।। foपुरिस । थायामात्रमेवार्यः ।।२५७ ॥ रतिषिय । रतिप्रियज्येष्ठौ १. तनी किम्पुरुषकिन्नरो सपोरवता तुमतीरतिसेनारतिप्रिया: भवन्ति बल्लभिकाः ॥२५८।। देवों और उनकी वल्लभाओ के नाम सोलह गाथाओ में कहते हैंकिलर कुल के इन्द्रों और उनकी वल्लभाओं के नाम गापा-(१) किम्पुरुष, (२) किन्नर, (३) हृदयंगमा (४) रुपमाली, (५) किन्नर किन्नर, १६) अनन्दित, (७) मनोरम. (८) किन्नरोत्तम (E) रतिप्रिय (१०) ज्येष्ठ-ये दस प्रकार के किस व्यस्तरदेव हैं। इनमें किम्पुरुष और किन्नर ये दो इन्द्र हैं। इनकी क्रमशः (१) अवसा (२) केतुमती ओम (१) रतिसेना (२) रतिप्रिया, ये दो दो वल्लभा देवांगनाएं हैं ।।२५७-२५८।। पुरुमा पुरुसुत्तमसप्पुरुतमहापुरुसपुरुमपदणामा । अतिपुरुमा माओमरुदेवमरुप्पहजसोवंतोः ।।२५९।। सप्पुरुसमहापुरुसा किंपरिसिंदा कमेण वल्लमिया । रोहिणया णवमी हिरि पुष्फवदी य इयरम्स ॥२६०।। पुरुषः पुरुषोत्तमसत्पुभवमहापुरुषपुषप्रभनामानः । मतिपुरुष: मरुमरुदेवम सत्प्रभयशस्वन्तः ।।२५९।। ससुरुपमहापुरुषी किम्पुरुपन्द्री क्रमेए। वल्लभिकाः । रोहिगी नवमी हो गृष्पवती च इतरस्य ॥२६॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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