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त्रिलोकसार
पापा । २५६ परि । प्रतिप्रतिमा एकका मानस्तम्भाः त्रिपाठविशालयुताः । तत्र मौक्तिक राम धोभते विध घन्टाबालादिक च ।।२५५।।
उन प्रतिमाओं के आगे स्थित मानस्तम्भ का विशेष निरूपण करते हैं
गाथार्थ:-प्रत्येक प्रतिमा के आगे एक एक मानस्तम्भ है जो तीन पीठ के ऊपर स्थित है और सोन शाल अर्थात् कोटों से सहित है तथा नाना प्रकार के मोतियों को मालाओं व दिव्य घण्टामाल आदि से शोभायमान हैं ।।२५५।।
विशेषार्थ:-त्रिपीट पर स्थित प्रत्येक जिनप्रतिमा के अग्रभाग में एक एक मानस्तम्भ है। यह तीन कोटों से घिरा हुआ है तथा मोतियों की मालाओं और दिव्य घण्टाजाल आदि से शोभायमान है। अथ अष्टविधयन्त राणां प्रतिकुलमवान्तर भेदमाह
किंगरचउ दसदसधा सेसा पारमममत्तचोदसधा । दो दो इंदा दो दो बन्लभिया युह सहस्सदेविजुदा ।।२५६।।
किन्नरचत्वारः दशदशधा शेषाः द्वादशसप्तचतुर्दशधा ।
द्वौ द्वौ इन्द्रो दे दे बल्ल भिके पृथक सहरदेवीयुते ॥२५६।। किर । किनरावयः वस्वारः बाबा बापा भिन्ते शेषाः पक्षावयः द्वावशषा सप्तया' सप्तधा सर्वशषा । प्रत्र द्वौ द्वौ इन्द्रो तयो बल्लभि पृषक पृयक सहस्रवेवोयुते ॥२५६।।
व्यन्तर देवों के मुख्य आठ कुलों के अवान्तर भेद कहते हैं
पाथार्थ:-किन्नरादि प्रथम चार कुल तो दस दस प्रकार के हैं, शेष बारह, सात, सात और चौदह भेद वाले है । प्रत्येक कुल के दो दो इन्द्र, प्रत्येक इन्द्र को दो दो वल्लभा और प्रत्येक वल्लभा की एक एक हजार परिवार देवांगनाएं होती हैं ॥२५॥
विशेषा:-किन्नर, किम्पुरुष, महोरग और गन्धर्व इन चार कुलों के दस दस अवान्तर भेद हैं, यक्ष बारह प्रकार के, राक्षस सात प्रकार के, भूत सात प्रकार के और पिशाच चौदह प्रकार के हैं। प्रत्येक फल के दो दो इन्द्र होते हैं अतः । कुलों के १६ इन्द्र हुए। प्रत्येक इन्द्र की दो बल्लभा होतो है मत: १६ इन्द्रों की ३२ बल्लभा देवांगनाएं हुई और प्रत्येक देवांगना एक एक हजार परिवार देवियों से युक्त होती है अत: पाठों कुलों की कुल देवियाँ बत्तीस हजार हुई। १ घण्टादिकं ( ५० ।। २ दादशधा (प.)। सप्तसप्तधा (प.)। * किन्नरफिम्पुरुष पृथक सहसदेवीपुते ( ५.)।