________________
२६८
पिलोकसार
पाया । २५१-२५२ ( ९.०० 1 से भाजित करने पर जो लब्ध प्राप्त हो वह व्यन्त र देवों का प्रमाण है, अतः व्यन्तर देवों के प्रमाण को संख्यात से भाजित करने पर जिन घस्यालयों का प्रमाण प्राप्त होता है। अथ व्यन्तराणां कुलभेदं निरूपयति
किंणरकिंपरिसा य महोरगगंधय्द जक्खणामा य । रक्खसभ्यपिसाया अहविद्या चतरा देवा ॥२५॥
किनकिम्पुम्पो च महोरगगन्धर्वयक्षनामानः च ।
राक्षसभूतपियााचाः अष्टविषा व्यन्तरा देवाः ।।२५१।। किरणर । छायामात्रमेवार्थः ॥२५॥ अब व्यन्तरों के कुलभेदों का निरूपण करते हैं
गाया:-व्यन्तरदेव आठ प्रकार के हैं-किन्नर, किम्पुरुष, महोग, ग्धवं, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच ।।२५१॥ अथ तेषां शरीरवणं निरूपति
तेसि कमसो वष्णो पियंगुफलधवलकालयसियामं । हेमं तिसुवि सियाम किलं बहुलेवभूसा य ||२५२।।
तेषां क्रमशः वर्णाः प्रियंगुफलधवलकालघयामाः ।
हैम: विष्वपि दयामः काण: बहलेपभूषा च ।।९५२।। तसि । तेषां क्रमशः पारीरबाः प्रियंगुफलपवलकालश्यामा हेमवर्षस्त्रिम्बषि श्यामवर्ण कृष्णवर्णः । ते देवा बालेपभूषणाः ॥२५२॥
व्यन्तरों के शरीर के वणं का निरूपण करते हैं
पापा:-इन व्यन्तरदेवों के शरीर का रंग मशः प्रियंगुफल, धवल, काला श्याम वर्ण, स्वर्ण तथा तीन का श्याम वरणं ओर अन्तिम व्यस्तरों का वर्ण काला होता है । ये सभी देव लेप एवं बाभूषणों से सहित होते हैं ।।२५२॥
विशेषार्थ:-किन्नर नामके व्यन्तरदेवों के शरीर का वणं प्रियंगुपुष्प सदृश, किम्पुरुषों का वणं धवल, महोरगों का काला या श्याम, गन्धवों का स्वर्णसदृश कान्तिमान, यक्ष, राक्षस और भूत जाति के देवों के शरीर का रंग श्याम तथा पिशाच पाति के व्यतर देवों का वर्ण काला होता है। ये देव बहुत से लेप और आभूषणों से विभूषित होते हैं ।