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________________ पाया। २४१ भवनाधिकार मसुरचउक्के सेसे उदही पन्लत्तियं दलूणकर्म । उपरवाहियं सरिस इंदादिपंचण्इं ॥२४१॥ असुरचतुष्के शेषे उदधिः एल्पत्रिक दलोनक्रमः। उत्तरेन्द्राणामषिक सरशं इन्द्रादिपश्चानाम् ॥२४॥ अपुर। मारपतुष्के शेषे उवषिः पल्यत्रिक पलोमनमः । एतदेवोत्तरेकाणां साधिक सहमिन्दाविषञ्चालाम् ॥२४॥ पूर्वोक्त असुरकुमारादि पार और शेष भवनवासियों में दक्षिणेन्द्रों की आयु विशेष कहते हुए उत्तरेन्द्रों एवं इन्द्रादिकों की आयु का निरूपण करते हैं--- गापा:-असुरकुमारादि चार की, और शेष भबनवासी देवों की आयु कार एक सागर, तीन पल्प, तथा आधा आधा पल्य हीन कही है, वह दक्षिणेन्द्रों की है । उत्तरेन्द्रों की वायु अनसे कुछ अधिक होती है. तथा इन्द्रादि पांचों ( इन्द्र, प्रतीन्द्र, लोकपाल, प्रायस्विशत् और सामानिक ) की आयु सदृश ही होती है ॥२४॥ _ विशेषाः -असुरकुमारादि देव) को उत्कृष्ट आयु: १. चमरेन्द्र ( दक्षिणेन्द्र )) एक सागर की उस्कृष्टायु है। 1. असुरकुमार: २ वैरोचन ( उत्तरेन्द्र ), एक सागर से कुछ अधिक है। ३. भूतानन्द ( दक्षिणेन्द्र), तीन पल्म उत्कृष्टायु । : नागकुमार: ४. धरणानन्द (उत्तरेन्द्र), तीन पल्य से कुछ अधिक। ५. वेणु (दक्षिणेन्द्र), अटाई पल्य । ६. वेणुधारी ( उत्तरेन्द्र } } अढाई पल्य से कुछ पधिक । ७. पूर्ण ( दक्षिणेन्द्र ), दो पल्प । ४. द्वीपकुमार: ८. वसिष्ठ (उत्तरेन्द्र ), दो पल्य से कुछ अधिक शेष बारह इन्द्रों में से प्रत्येक दक्षिणेन्द्रों की उत्कृष्ट आयु ( १ )देव पल्म तथा प्रत्येक सत्तरेन्द्रों की कुछ अधिक डेन पन्योपम प्रमाण है। इन्द्र, प्रतीन्द्र, लोकपाल, श्रास्त्रिश और सामानिक इन पांच देवों की आयु सदृश ही होती है। व्यन्तरों की उत्कृष्टापु एक पल्म को तथा उपयुक्त सभी देवों को जघन्यायु दश हजार वर्ष की श्रोधी है। ३. सुपर्णकुमार:
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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