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________________ २२० त्रिलोकसार पाषा : २४० देवों के पारिषद् देवों को देवियां कम से दो सौ, एक सौ साठ जोर एक सौ चालीस हैं । गरुड़ देवों के पारिषद देवों को देवियां सोलह में देश का गुणा और बीस बीस कम अर्थात् १६०, १४० और १२० हैं, तथा शेष देवों के पारिषदों की देवियां कम से चौदह में दश का गुणा और कम से बीस बीस अलग, in हैं : नाति अनीकों के प्रधान देवों की एवं अङ्ग रक्षकों की सौ सौ देवांगनाए है । अनीक देवो की देवियां उसके अर्थ प्रमाण अर्थात् ५० हैं. तथा सब निःकृष्ठ देवों के बत्तीस देवांगनाएं होती है ॥२३७,२३८,२६९ । विशेषार्थः-पारिषद देवों को देवांगनाओं का प्रमाण अभ्यन्तर परिषद मध्यम परिषद बान परिषद अमरेन्द्र के २५० वैरोचन केनागेन्द्रों के २०० १६० गरुक्षेन्द्रों के १४० शेष इन्द्रों में प्रत्येक के २०० २०० अनीकों के प्रधान देवों की ओर अङ्गरक्षकों की १००, १. देवांगनाए है, अनीक देवों की ५० और निकृष्ट देवों को ३२ देयांगनाएं होती हैं। इनसे कम किसी भी देव की नहीं होती। अथ भवनवासिनाम ग्रे वक्ष्यमाणज्यतराणां च जघन्योत्कृष्टमायुराचई अमुरादिनदुसु सेसे मौम्मे सायर तिपल्लमाउम्स । दलहीणझमं जगु दसवाससहस्समबरं तु ॥२४॥ असुरादिचतृषु शेषे भौमे सागर त्रिपल्यं आयुष्यम् । दलहीन क्रमः जोष्टं दशवर्षसहस्र अबरं तु ॥२४०।। प्रसुरा। मसुरादिषु चतुषु शेषे ६ मौमे पायपासंख्य सागरोपमं त्रिपाय वायुष्य बलहीनाक्रमः। एतत्सव ज्येष्ठं अपरं स्वायुवंशवर्षसहन १२४०॥ भवनवासी देवों की तथा आगे कहे जाने वाले व्यन्तरदेवों की जघन्योत्कृष्ट आयु कहते हैं पापा:-असुरफुमारादि पार कुलों के इन्द्रों की, शेष भवनवासियों की और भ्यन्तरदेवों को उत्कृष्टायु क्रम से एक सागर, तीन पल्प तथा आधा भाषा पल्य कम है, तथा जघन्यायु दस हजार वर्ष है ।। २४० ।। अथोक्तानामेव सविशेषेणायः कथयन तदेवायत्रेति निरूपयति
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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