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________________ त्रिलोक साथ पापा: २३६ भवनवासी देव असंख्यात हैं, अतः प्रकीरकादि शेष चार प्रकार के देव भी असंख्यात ही हैं, ऐसा माथा में बिना कहे ही जाना जाता है। इसीलिए उनका प्रमाण नहीं कहा गया अब यहाँ असुरकुमारादि देवों के इन्द्रों की देवियों की संख्पा दो गाथायों द्वारा कहते हैं: २१८ L गाथार्थ:- असुरत्रिक में से असुरकुमारों के इन्द्र चमरेन्द्र की छप्पन हजार ( ५६००० ) देवियों होता है। उनमें से सोलह हजार उसकी प्राण बल्लभाएँ हैं। शेष दो (नागकुमार, सुपकुमार ) की देवियों क्रम से हजार कम होती है शेष दीप कुमारादिकों के इन्द्रों की बत्तीस बत्तीस हजार देवांगनाएँ होती है जिनमें दो दो हजार प्राण बल्लभाएँ हैं । इन उपयुक्त देवांगनाओं में पांच पांच अपनी अपनी ज्येष्ठ प्रर्थात् १ट्टरानी सहृदा महादेवियां होती है। असुरत्रिक इन्द्रों को ज्येष्ठ देवियाँ मूलशरीर सहित आठ आठ हजार और शेष द्वीपकुमारादि इन्द्रों की ज्येष्ठ देवियाँ मूलवारी सहित छह छह हजार विक्रिया करती हैं ।। २३४,२३५ ॥ विशेषार्थ:- असुरत्रिक का अर्थ है- अरकुमार, नागकुमार और सुपकुमार । बल्लभाएं + परिवारदेवि कुल इन्द्र अग्रदेवि कुल संख्या - मूलशबी ५ + १६०० + ३९९९५ ३६००० ४. + + ३९९९५= tr ५ + १००००+ ३९६६५ ५००० १. असुर कु० मरेन्द्र रोचन भूतानन्द २. नाग कु० घरणानन्द- वेणू ३ सुषां कु०वेणुषा शेष ७ कुलों के इन्द्रों की ५ + ५ + 1 ५ + " १०००० + ३६६६५= ४०००+ ३९९९५ - ४४००० Y F अथ धमरवे रोचनयो: पट्टदेबीना संजामाह- 17 " 1 सहित, विक्रिया शक्ति ८००० ४०००+ २००० + २९९९५ - ३२००० ( प्रत्येक की ) ६००० 13 "1 " 17 ト किve सुमेधसुकड्ढा स्यणि य जेडित्थि पउम महपउमा । पउमसिरी कणयसरी कणयादिममाल, चमरदुगे ।। २३६ || कृष्णा सुमेधा सुकाया रत्नी च ज्येष्ठा स्त्रियः पद्मा महापद्मा । पद्मश्रीः कनकश्री कनकादिमाला चमरद्विके ।।२३६ ॥ किन्ह। कृष्णा सुमेधा सुहा प्रख्या रस्नी च जेास्त्रियः पद्मा महापद्मा पद्ममी: कनकभी, कमकमाला एताश्च मरद्विके ॥२२६॥ अब चमर और वैरोचन इन्द्रों की पट्ट देवियों के नाम कहते हैं :
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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