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पाया : २३४-२३४
भवनाधिकार
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भवनवासी देवों में क्रम से नाव, गरुड़पक्षी, हाथी, मगर, कोट, खड्गी, सिंह, शिविका और अश्व ये प्रथम अनीक होते हैं। शेष ( द्वितीयादि) प्रनी पूर्ववत् मर्षात् असुरकुमारों के ही समान होती है ।। २३२, २३३ ॥
विशेषार्थ:-दशों भवनवासी देवों में निम्न लिखित अनीकें होती हैं:
१. असुरकुमार महिष, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्धवं और नृत्यको । २. नागकुमार : नाव, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्धवं और नृत्यकी । ३. सुप कुमार : गरुड़, घोड़ा, रथ, हाथी, क्यादे, गन्धवं और नृत्यकी । ४. द्वीपकुमार हाथी, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्धवं और नृत्यको । ५. उदधिकुमार मगर, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्धयं और नृत्यकी । ६. विद्यतकुमार ऊंट, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्धर्व और नृत्यकी । ७. स्तनितकुमार खड्गी, घोड़ा, रथ, हाथी, पयारे, गन्धर्व और नृत्यकी ८ दिनकुमार सिंह, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्धवं और नृत्यकी । ५. अग्निकुमार शिविका, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्धर्व और नृत्यकी । १०. वायुकुमार : अश्व, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्धवं और नृत्यकी ।
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प्रकीरकादिदेवानाम संख्यातत्व मनुक्तमप्य व गन्तव्यमिति
अथ
भवन देवानाम संख्यतत्यात् तत्प्रमाणमनुक्या साम्प्रतमसुरादिदेवीनां संख्यां गावाद्वयेनाह
असुरतिए देवीओ लपण्णसहस्स तत्थ बन्लभिया । मोलesi Braसहस्सेरगुणक्कमो होइ ॥ २३४ ॥ । बीस व महस्सा सेसे पण पण मजे देवीओ | विसृ भट्ट बम्सहस्सं विद्युव्वणा मूलतसहियं ॥ २३५ ॥
असुरत्रिके देव्यः पाशत्सहस्राणि तत्र बल्लभकाः । षोड़शसहस्राणि षट्सहस्र गोनक्रमो भवति ॥२३४॥ द्वात्रिंशत् सहस्राणि शेषे पञ्च पञ्च स्वज्येष्ठदेव्यः । त्रिषु अश्रु षट्सहस्रं विकु णामूलत नुसहिताः || २३५ ।। सुरत तासु वेषीषु इत्यर्थः । शेषं छायामात्रं ॥ २३४॥७
बशीष । शिरसहस्राणि ह े सहस्र शेषे द्रोपदी तासांमध्ये पच पच ज्येवेश्यः प्रसुरादिदीपाने शेषे च ज्येवेभ्यः षट्सहस्रविकुर्बा मूलत नुसहिताः ॥ २३५॥
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