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________________ त्रिलोकसार पाया : २३२-२२३ १५६=१४३ x १५१४४-२४३४१२४-२४६२४४ होता है! २४ ६२४ को एक कम गुणकार (2.-.-४) से बच्चे कान पर २६ होते हैं । इसमें से २४ ६२४४ को घटाने से २४६२४४-२४६२४४-२४६२४४ प्राप्त होते हैं । इसको मन में धारण कर गाथा में 'अणगुणेण हिये अर्थात् एक कम गुणकार से भाजित' ऐसा कहा गया है । पुनः ६२४ को ४ से अपवर्तन करने पर 3-- १५६, इसको आदि ( २ ) से गुणा करने पर १५६ x २-३१२ गुण संकलित धन प्राप्त होता है। ऐसा विचार कर गाथा में 'मुहेणगुणियम्मि' अथति मुख से गुणा करना चाहियेऐसा कहा गया है । लौकिक परिणत में भी इस कारण सूत्र को इस प्रकार दर्शाया गया है:-- s- (R-!) इस प्रकार सर्वत्र समान राशि को एक कम गुणकार से भाजित करने पर जो लब्ध प्राप्त हो उसमें से बहुभाग अर्थात् एक कम गुणकार तो ऋण राशि होती है और एक माग शुद्ध राशि होती है। यह व्याप्ति सर्वत्र लगा लेनी चाहिए। इदानीमानीकभेदस्वरूपं गाथाद्वयेना - मसुरस मदिसतुरगरथेमपदाती कमेण गंधया । णियाणीय महत्तर महचरी छक्क एक्का य ||२३२।। गावा गाडिममयरं करभं खग्गी मिगारिसिवियस्सं । पढमाणीयं सेसे सेमाणीया ए पुन्वं च ।।२३३।। असुरस्य महिपतु स्गर थेभपदातयः क्रमेण गन्धर्वः । नृत्यानीकं महतरा महत्तरी पट एका च ॥२३॥ नोगहडेभमकरं करभः खङ्गी मृगारिशिविकाश्वम् । प्रथमानीकं शेषे शेषानीकास्तु पूर्व इव ॥२३३।। प्रसुर । सुरस्य माहियपुरमरपेभपातयः कमेण गम्पः नत्यानीक प्रथमा षट् महस नृत्यानी कमेकं महत्तरी ॥२३२॥ रणावाशेषे नागावो इत्यर्थः । अन्यछायामात्र ॥२३॥ अब बनीकों के भेद एवं स्वरूप दो गाथाओं द्वारा कहते हैं: मापार्थ:-असुरकुमार ( भवनवासी ) देवों के महिष, घोड़ा, रथ, हाथी, पयादे, गन्धर्व और नत्यको ये सात अनीक ( सेना ) देव होते हैं । इनमें से आदि की वह अनीकों में छह महत्तर । प्रधानदेव ) और अन्तिम मनीक में एक महत्तरी ( प्रधानदेवी) होती है। शेष नागकुमारादि नौ
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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