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________________ ૨૪ अब उत्तरोत्तर सद्दश गुणकार के क्रम गुण संकलन करण सूत्र को कहते हैं. — त्रिलोकसाथ पाया : २३१ प्राप्त सातों अनीकों के धन को प्राप्त करने के लिए गावार्थ:- पद का जितना प्रमाण है, उतनी बार गुगुकार का परस्पर में गुणा कर प्राप्त गुग्गुन फल में से एक घटा कर एक कम गुणकार से भाजित करने पर जो लब्ध प्राप्त हो उसका मुख में गुरम। करने से गुण संकलित धन का प्रमाण प्राप्त होता है ॥२३१॥ विशेषार्थः- स्थानों के प्रमाण को गच्छ या पद कहते है, तथा प्रत्येक स्थान पर जितने का गुणा किया जाता है उसे मुगाकार कहते हैं। यहाँ गच्छ ( पद ) का प्रमाण ७ है । गुणकार २ ( प्रत्येक कक्षा का प्रमाण दुगुना दुगुना है, इसलिए गुणकार का प्रमाण दो कहा गया है) और मुख ६४००० है । पद बराबर गुणकारों का परस्पर में गुग्गा करने में ( १x२४२२२४२x२) १२८ फल प्राप्त हुआ। इसमें मे १ घटा कर एक कप गुणकार का भाग देने से [ १२८- १ = १२७÷ (२- १ ) } = ३७ लब्ध प्राप्त हुआ। इसका मुख से गुणा करने पर ( ३४००० X १२७) ८१२८००० गुणसंकलित धन प्राप्त होता है। इसमें सात का गुसा करने से ( ८१२८०००७) ५६८९६००० सातों अनीकों का समस्त धन प्राप्त हो जाता है । यह चमरेन्द्र की अनीकों का सघन है। वैरोचन का : - २४२ × २x२× १४२४२ - १२८ - १ = १२७ (२-१) - १- १३० मुख ६०००० x १२७ = ७६२०००० यह पृथक् पृथक् अनीकों का संकलित घन है और ( ७६२०००० ४७ ) ५३३४०००० सातों अनीकों का सामूहिक मन है । भूतानन्द का : - २४२४२x२४२४२४२ - १२६-११२७ (२-१) - १२७५६००० मुख ४१२७ = ७११२००० भिन्न भिन्न अनीकों का धन है, तथा ७११२००० ७७६४००० घार करोड़ सत्तानवे लाख चौरासी हजार प्रमाण सातों अनीकों का सर्व संकलित घन है। शेष सत्रह इन्द्रों का :- २४२x२४२x२४२x२ = १२६ - १ = १२७ (२-१)= १२७ मुख ५०००० X १२७६३५०००० - त्रेसठ लाख पचास हजार शेष सत्रह इन्द्रों में से प्रत्येक के प्रथम अनोक का प्रमाण धन है । ६३५००००४७ - ४४४५००००. चार करोड़ चवालीस लाख पचास हजार यह शेष सत्रह इन्द्रों में से प्रत्येक के सातों अनीकों का संकलित घन है। : उपर्युक्त करण सूत्र उदाहरण द्वारा सिद्ध किया जाता है : आदि (मुख) २ है, उत्तरोत्तर गुणकार ५ है, गच्छ ( पद ) ४ है, अतः इसका प्रथम स्थान २ दूसरा स्थान २५, दीसरा स्थान २४५४५, चौथा स्थान ५ x ५ x ५ x ५ है ।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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