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________________ २१२ त्रिलोकसार पाया । २० पढमा । छायामात्रमेवार्यः ॥२२६॥ अप तीनों परिषदों के विशेष नाम कहते हैं गायार्थः-सर्वदेवों की सभाओं में प्रथम परिषद् का नाम समिद, दूसरी का नाम चन्दा तथा तीसरी का नाम जतु है ॥२२९।। विशेषायः-सरल है। इदानीमानीकभेदं सरसंक्ष्यां चाह सशेव य आणीया पत्त्यं सच्चसमकक्खजुदा । पदम ससमाणसम तद्गुणं चरिमकाखेति ॥२३०।। सप्तव व मानीकाः प्रत्येक सप्तसप्तकक्षयुताः । प्रथम स्वमामानिकसम तदति गुणं चरमकक्ष इति ।।२३० ।। ससेव। सप्तवामीकाः प्रत्येक सप्तसतशयुताः प्ररमानी बसामामिकामं तपरिपूरणं परमकरं पावतु ॥२३०॥ - मनीक देवी के भेद और उनकी संख्या कहते हैं: पाया:-अनीक देव सात ही होते हैं। उनमें अलग अलग सात सात कक्षाएँ ( फौजें ) होती हैं, उनमें से प्रथम कक्षामें संख्या की अपेक्षा अपने सामानिक देवों के बराबर देव रहते हैं आगे वे अंतिम कक्षा तक नतरोत्तर दुने दूने होते गये हैं ।।२३०॥ विशेषार्थ:-एक एक इन्द्र के पास सात सात अनीक ( कोज या सेना ) होती हैं । प्रत्येक बनीक की सात सात कक्षाएं होती हैं । प्रथम कक्षा का प्रमाण अपने सामानिक देवों की संख्या के बराबर होता है, इसके आगे का प्रमाण दूना दूना होता गया है । जैसे-भवनवासियों का प्रथम कुल असुरकुमार का है, और असुरकुमारों में, महिष, घोड़ा, रथ, हाथो, पादचारी, गन्धर्व और नतंकी ये सात अनीक है । असुरकुमारों के समरेन्द्र के पास ६४.०, सामानिक देव हैं, अतः इसके प्रथम अनीक महिषों की संख्या भी ६४००० ही है । द्वितीय कक्षा के महिषों की संख्या १२८ हजार, तृतीय कक्षा के २५६ हजार, चतुर्थ कक्षा के ५१२ हजार, पंयम कक्षा के १.२४०.०, षष्ठ कक्षा के २०४८०.. और सम कक्षा के महिषों की संख्या ४०६६००० है । इस प्रकार चमरेन्द्र के पास सातों कक्षाओं के कुल भैसे ८१२८००० है, तथा इतने ही अश्वादि है। अभ गुणोसरक्रमेणागतसमानीकधमानयने प्रयुक्तमिदं गुणसंकलितसूत्रम्
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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