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पाया | २९
भवमाधिकार
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मैं सामानिक और अङ्गरक्षकों का प्रमाण क्रम से आठ का वर्ग = ६४ हजार, सोलह का वर्ग - २५६ हजार, ४ हजार और १६ हजार होन होन क्रम से जानना अवशेष सत्रह इन्द्रों में से सामानिक पचास हजार, तनुरक्षक दो लाख, इन्हीं स्थानों की आभ्यन्तर परिषद् में चमरेन्द्र के २० हजार, बंरोचन के २६ हजार, भूतानन्द के छह हजार तथा अवशेष के ४ हजार हैं। आभ्यन्तर परिषद से मध्य परिषद् का प्रमाण दो हजार अधिक है, तथा मध्य से बाह्य परिषद् का प्रमाण दो हजार अधिक है । ॥२२५,२२७,२२८।।
विशेषार्थ:- प्रत्येक कुल में इन्द्र और प्रतीन्द्र एक एक ही होते हैं, तथा उपयुक्त बीस इन्द्रों में से प्रत्येक के प्रास्त्र देव तैंतीस और पूर्वादि दिशाओं में स्थित एक एक लोकपाल अर्थात् लोकपाल कुल चार चार ही होते हैं । चमरत्रिक का प्रयं है चमरेन्द्र वैरोचन और भूतानन्द ।
सामानिक देवों की संख्या:- चमरेन्द्र के ६४ हजार सामानिक देव, वैरोचन के चार हजार कम अर्थात् ६० हजार, भूतानन्द के ( ६० ह० - ४ ६० ) २६ हजार तथा शेष सत्रह इन्द्रों के ५०, ५० हजार सामानिक देव है ।
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तनुरक्षक देवों का प्रमाण:- चमरेन्द्र के दो लाख ५६ हजार ( २५६०००), वैरोचन के १६ हजार कम अर्थात् दो लाख ४० हजार, भूतानन्द के ( २४००००-१६००० ) दो लाख २४ हजार, तथा शेष सत्र इन्द्रों के बीस बीस हजार तनुरक्षक देव हैं।
मादि पारिषद देवों का प्रमाण :- चमरेन्द्र के २८००० हजार, वैरोचन के २६०००, भूतानन्द के ६००० और शेष सत्रह इन्द्रों के चार चार हजार ४०००) पारिषद देव हैं।
मध्य परिषद देवों का प्रमाण :- घमरेन्द्र के ३००००, वैरोचन के २८०००, भूतानन्द के ५००० और शेष सत्रह इन्द्रों के छह छह ( ६००० ) हजार पारिषद देव हैं।
परिषद देवों का प्रमाणः-- अमरेन्द्र के ३२०००, वैरोचन के ३०००० भूतानन्द के १०००० और शेष सत्रह इन्द्रों के आठ माठ हजार ( ८०००) पारिषद देव हैं। आभ्यन्तर परिषद् से मध्यपरिषद में प्रत्येक इन्द्र के पारिषद देव दो दो हजार अधिक होते हैं, तथा मध्यपरिषद् से बाह्य परिषद के दो दो हजार ( २००० ) देव अधिक होते हैं ।
अथ परिमाणां विशेषाभिधानमाह
पढमा परिसा समिदा विदिया चंदोचि णामदी होदि ।
दिया जदुअहिषाणा एवं सम्ये देवेसु || २२९ ॥
प्रथमा परिषत् समित् द्वितीया तृतीया जत्वभिधाता एवं
चन्द्रा इति नामतो भवति । सर्वेषु देवेषु ॥ २२९ ॥