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________________ त्रिलोकसार चाचा । २२६-२२५-२२८ विशेषार्थ:- :- भ्यन्तर और ज्योतिषी देवों में प्रायस्त्रिश और लोकपाल ये दो भेद नहीं होते, शेष नौ भेद होते हैं । भवनवासी और कल्पवासियों में सभी ग्यारह भेद होते हैं। कल्पातीतों में सभी अहमिन्द्र हैं. समान विभूतिवाले हैं, होनाधिक नहीं हैं। १९० अथ भावनेनिद्रादिपरिषत्रयान्तानां संख्या गाथायेणाह -- इंदसमा हु पटिंदा सोमो यम वरुण ग्रह कुवेरा य । पुण्वादिलोयवाला तेवीससुरा हु तेतीसा || २२६ || चमरतिये सामणियतपुरकखाणं पमाणमणुकमसो | मडसोलक दिसहस्सा चउसोलसह स्सहीणकमा || २२७॥ पण्णसहस्स बिलक्खा सेसे तट्ठाण परिसमादिन्लं । महत्र्वीसं छच्चसहस्स दुसइस्परढिकमा ।। २२८|| इयं हि एवं इत्यर्थः । शेषं छापामाश्रमेवार्थः ॥ २२६ ॥ चमचमत्रिके सामानिकतानुरक्षाणां प्रमाणमनुक्रमशः प्रष्टकृष्टिषोड़शकुतिसारण चतुः सहस्रशसहस्रहीनः क्रमशः २२७॥ इन्द्रसमाः खलु प्रतीन्द्राः सोमो यमां वरुणस्तथा कुबेरश्च । पूर्वादिलोकपालाः श्रयस्त्रिसुराः हि श्रमस्त्रियत् ॥२२६॥ चमरात्रि के सामानिकतनुरक्षा प्रमाणमनुकमशः । अष्टषोड़शक तिसहस्राणि चतुः षोडशसहस्रहीनकमा || २२७|| पञ्चाशत्सहस्राणि द्विलक्षे शेषे तत्स्थाने परिषदादिमा । अष्टषविशेषट्चतुः सहस्राणि द्विसहस्रवृद्धिक्रमः ॥२२६॥ पाशहारिण दिलसे शेषे मागाविषु तरस्थामे चमत्रिणशेषस्थाने प्रावि परिषदट्टाविंशति सहस्राणि वितिसहस्राणि षट्सहस्राणि चतुःसहस्राणि मध्यमबाह्यपरिषदोस् उक्तसहस्रष्वेव द्विसहस्र वृद्धि कम नासण्यः ॥२२८॥ भवनवासी देवों में इन्द्र से प्रारम्भ कर तीन प्रकार के पारिषद, देव पर्यन्तं देवों की संख्या तीन गाथाओं द्वारा कहते हैं -- गाथार्थ:- - इन्द्र समान ही प्रतीन्द्र हैं अर्थात् एक इन्द्र है और एक ही प्रतीन्द्र है। पूर्वादि दिशाओं के सोम, यम, वरुण और कुबेर ये चार लोकपाल है । तथा प्रायस्त्रिशदेव तैंतीस होते हैं। चमरत्रिक १क्रमः प० ) । · i
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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