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पापा : २२४-२२५ भवनाधिकार
२०६ अथ इन्द्रादिपरवीना दृष्टान्तमाह
रायजुवतंतराए पुत्तकलचंगरक्खवरमज्मे | अवरे तंडे सेणापुरपरिजणगायणेहि समा ॥२२४॥
राजयुवतन्त्र राजः पुत्रकछत्राङ्गरक्षवरमध्येन ।
अवरेण तण्डेण सेनापुरपरिजनगायकः समाः ।।२२४॥ राम | Nagar पुकसाक्षरसी परेण मध्येन पपरेण - तरेण प्रदलगेन सेनापूरपरिजमगायकः समाः ।।२२४॥
अब इन्दादिक पदवियों का दृष्टान्त कहते है
गावार्थ:- ये उपयुक्त देव राजा, युवराज, सेनापति, पुत्र, कलत्र, अङ्गरक्षक, उत्तम, मध्यम और जघन्य के भेद से तीन प्रकार के सभासद, सेना, प्रजाजन, परिजन ( दास ) और गायक के सहश होने हैं ॥२२॥
विशेषार्गः- उपयुक्त देवों में से इन्द्र राजा के सदृश, प्रवीन्द्र युवराज सदृश, दिगिन्द्र तन्त्रराज ( सेनापति ) सहरा, श्रास्त्रिशदेव पुत्र सदृश. सामानिक देव पनी सदृश, तमुरक्षक अङ्गरक्षक सहश, तण्द्रेण अर्थात् तीनों प्रकार की परिषद् राजा की बाल, मध्यम और अभ्यन्तर समिति के सदृश, अनीक मेना सदृश, प्रकोणक व्यापारी सदृशा, आभियोग्य दास सदृश और किरिवषिक पा बजाकर माजीविका चलाने वालों के सहश होते हैं। अथ चतुनिकायाम रेलिंब द्रादीनां सम्भव प्रकारमाह
वैतरजोयिसियाणं तेचीससुरा ण लोयपाला थे । भवणे कप्पे सध्चे हवंति अहमिदया नसो ।।२२५॥
व्यन्तरज्योतिरकाणा प्रयस्त्रिशसुरा न लोकपालाः च ।
भवने कल्पे सर्वे भवन्ति अहमिन्द्रका नतः ।।२२। तर। प्रसरज्योतिषका प्रयस्त्रिशरसुरा म संत लोकपालाच अवमे कल्पे व सन्ति तत: परमहमिन्द्राः ॥२२॥
अब घारों प्रकार के देवों में पाए जाने वाले इन्दादिक ( सम्भव ) भेदोको कहते है--
गावार्थ:-उपन्त रवासी मौर ज्योतिषी देवों में बायस्त्रिंशत् और लोकपाल ये दो भेद नहीं होते । भवनवासी और कल्पवासी देवों में सभी भेद होते हैं तथा कल्पातीत देवों में कोई भेद नहीं है, वे सभी अहमिन्ट है ।।२२५॥
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