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पापा। २२१
भवनाधिकार
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गावार्थ:-भवनों की लम्बाई चौड़ाई का जघन्य प्रमाण संख्यात करोड़ योजन और उस्कट प्रमाए असंख्यात करोड़ योजन है । वे समस्त भवन चौकोर हैं, तथा उनका बाहुल्य (ऊँचाई तीन सो योजन है। प्रत्येक भवन के बीच में सौ योजन ऊषा एक एक पर्वत है और उन पर्वतों के ऊपर चैत्यालय हैं ।।२२०॥
विशेषार्ग:-भवनों का जघन्य विस्तार संख्यात करोड़ योजन और उत्कृष्ट विस्तार असंख्यात करोड़ का है। रोहै। बाई पनि सौ योजन है प्रत्येक भवन के ठीक मध्य में सौ योजन ऊंचा एक पर्वत है, और प्रत्येक पर्वत पर एक चैत्यालय है।
शंका:-भवनों को भूमिगृह की उपमा फ्यों दी गई है ?
समाधान:--में यहां मकान में पृथ्वी के नीचे जो कमरा बनाते हैं, उसे तहखाना तलघरा मा भूमिगृह कहते हैं, वैसे ही भवनवासियों के भवन रत्नप्रभा पृथ्वी में चित्रा पृथ्वी के नीचे खर भाग और पङ्क भाग में हैं, अतः इन्हें भुमिगृह को उपमा दी गई है।
शंका:-तरक बिल भी इसी प्रकार रस्तप्रभा पृथ्वी में चित्रादि पृष्चियों के नीचे मबहुल भाग में बने हुए हैं, फिर उन्हें भवन संशा न देकर बिल संज्ञा क्यों दी गई है ?
समाधान:-जिस प्रकार यहाँ सपाधि पापो जीवों के स्थानों को मिल कहते हैं, और पुण्यवान् * मनुष्यों के रहने के स्थानों को भूमि ग्रह मादि कहते हैं, उसी प्रकार निःकृष्ट पाप के फल को भोगने वाले नारको जीवों के रहने के स्थानों की संज्ञा बिल है और पुण्यवान देवों के स्थानों को संज्ञा भवन है। अथ तेषां भवनावस्थितस्थानानि गाथाद्वयेनाह--
चतर मप्पमइड्ढियमज्झिमभवणामगण भवणाणि । भूमीदोधो इगिदुगवादालसइम्सइगिलक्खे ॥२२१॥
व्यन्त राणा मल्पमधिकमध्यमभवनामरायो भवनानि ।
भूमितोषः एकदिकद्वाचत्वारिंशत्सहस्रएकलक्षाणि ॥२२१।। बतर । व्यस्तराए। भल्पषिमहधिकमध्यमधिभवनामराणां च भवनानि चित्राममिता घोषः एकसहमतिसहस्रवाचवारिंशसाहबएफलक्षारिणयोजनानि गरवा भवन्ति ।।२२१॥
अब उन भवनों में स्थित स्थानों का वर्णन दो गाथाओं में किया जाता है
गावार्थ:-चित्रा पृथ्वी से एक हजार योजन नीचे व्यन्तर देवों के आवास हैं । दो हजार योजन नीचे जाकर अल्पऋद्धि के धारक मवनवासी देवों के विमान हैं । बयालीस हजार योजन नीचे जाकर महाऋद्धि के धारक भवनवासी देवों के पवन है तथा एक लाख योजन नीचे जाकर मध्यम ऋद्धिधारक देवों के भवन हैं ।।२२।।