SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०५ गाथा : २१७-२१८ भवनाधिकार उन प्रतिमाओं के सामने स्थित मानस्तम्भों का स्वरूप कहते हैं गाथा:-जन प्रतिमाओं के आगे प्रत्येक दिशा में रत्नमयी उत्तुङ्ग पांच पाप मानस्तम्भ विराजमान हैं। वे अपने उपरिम भाग में चारों दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में सात सात प्रतिमाओं पहित हैं ॥ २१६ ॥ विशेषार्थ।- प्रत्येक दिशा की पांच पांच जिनप्रतिमाओं के आगे अट्ठाईस अट्टाईस जिनप्रतिमाओं सहित रत्नमयी पच पच मानस्तम्भ विराजमान हैं। अथेन्द्राणा भवनसंख्या शापयत्राह चौतीसं चउदालं महसीसं छसुवि ताल पण्णासं । चउचउविहीण ताणि य इंदाण मवणलक्खाणि ॥२१७|| चतुखिशचतुश्चत्वारिंशदाविशत् पट्स अपि चत्वारिंशत् पश्चाशत् । चतुश्चतुविहीनानि तानि च इन्द्राणां भवनलक्षाणि ॥२१॥ चोत्तीस । चतुस्त्रिशस्वचत्वारिंशत् अष्टाविंशत् षट्सु स्थानेषु परवारिक पञ्चाशत्तरेबान प्रति धनुषयविहीनामि तानि इमाणां भवनलमाणि ॥२१७।। भवनवासी इन्द्रों के भवनों की संख्या गाथा-दक्षिणेन्द्रों के क्रमशः चौतीस लाख, चबालीस लाख, मदतीस लाख, छह स्थानों में चालीस लाख और इसके आगे पचास लाख भवन है तथा उत्तरेन्द्रों के क्रमशः उपयुक्त प्रमाणों में से चार चार हीन भयनों की संख्या है ।।२१७।। विशेषाः - चमरेन्द्र के ३४ लाख, भूतानन्द के ४४ लाख, घेणु के अड़तीस लाख, पूर्ण के ४० लाख, जळप्रभ के ४. लाख, घोष के ४० लान, हरिषेण के ४० लाख, अमितगति के ४० लाख, अग्निशिखी के ४० लाख, और वेलम्ब के ५० लाख भवन हैं। इसीप्रकार उत्तरेन्द्रों में-वैरोचन के ३. लाख, धरणानन्द के ४० लाख, वेणुधारी के ३४ लाख, वशिष्ट के २६ लाख, जलकान्त के ३६ लाख, महाघोष के ३६ लाख, हरिकान्त के ३६ लाख, अमितवाहन के ३६ लाख, अग्निवाहन के ३६ लाख और प्रभखन के ४६ लाख भवन है। अथ तेषां भवनानां विशेषस्वरूपमाह ससुगंधपुष्फसोहियरयणधरा रयणभित्ति णिच्चपहा । सबिदिय सुइदाहहि सिरिखंडादिहि चिदा मवणा ।।२१८।। ससुगन्धपुष्पशोभितरत्नघरा रत्नभित्तयः नित्यप्रभाः । सर्वन्द्रिय सुखदायिभिः श्रीखण्णादिभिरिचता भवनाः ।।२१८||
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy