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________________ पाथा 1 २१२-२१३ मत्रनाधिकार २०३ विद्य तकुमारों में घोष और महाघोष, स्तनितकुमारों में हरिण और हरिकान्त; दिक्कुमारों में अमितगति और अमितवाहन, अग्निकुमारों में अग्निशिखी और अग्निवाहन तथा वायुकुमारों में वैलम्ब और प्रभखन नामके दो दो इन्द्र होते हैं। ये सब मिल कर बीस होते हैं । अथ तेषां परस्परस्पर्धास्थानमाह ९.मरो सोहम्मेण य भृदाणदो य वेणुणा तेसिं । विदिया बिदियेहि समं ईसंति महावदो णियमा ॥२१२।। चमर: सौधर्मेण च भूतानन्दश्न वेणुना सेषां । द्वितीया द्वितीयः सम ईष्यन्ति स्वभावतो नियमात् ॥२१२॥ धमरो। छायामात्रमेवार्यः ॥२१२॥ उन इन्द्रों के परस्परस्पर्धास्थान का कथन करते हैं गायार्थ:-चमरेन्द्र सौधर्मेन्द्र से, वैरोचन ऐशानेिन्द्र से, भूनानन्द बेणु से और धरणानन्द वेणुधारी से स्वभावत: नियम से ईष्या करते हैं ।।२१२।। विशेषार्थ:- द्वितीया का अर्थ वरोचन और धरणानन्द तथा द्वितीयः का अर्थ ऐशानेन्द्र और वेणुघारी है। अथ ते पाममुरादीनां चिह्नमाह चूडामणिफणिगरुई गजमयरं बढमाणगं वक्ष । हरिकलसस्सं चिह्न मउले चेचहुमाह धया ||२१३।। ___ चूडामणिफरिणगरुडं गजमकर वर्घमानक वज्ज। हरिकलशापवं चिह्न मुकुटे चैत्य व मा अथ ध्वजाः ।।२१३।। पूरा । तेषां चिह्नाः इति शेषः । छायामात्रमेवार्थः ॥२३॥ असुरादि कुलों के चिह्न गापा:-असुरकुमारादि भवनवासी देवों के मुकुंटों में क्रमशः चूड़ामणि, सर्प, गरुड़, हाथी, मगर, वदमान (घड़ा ), बच्च, सिंह, कलश और अश्व के चिह्न है। चंदयवृक्ष और ध्वजा भी इनके चिह्न हैं ॥२१॥ विशेषार्थ:-सरल है। अध तच्चस्यवृक्ष भेवानाह
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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