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त्रिलोकसाथ
अथ भवनवासिनां कुलभेदं तेषामिस्वनामानि च गाथायेणाहू
वाचा : २०९-२१०-१२१
असुराणामसुवण्णादीषोद हि विज्जुणिद दिसगी । वादकुमारा पढमे चमरो बहरोड़ो हंदी || २०९ ।।
असुरो नागपो द्वीपोदधिविद्य रस्तनितदिगग्नयः । वादकुमारा प्रथमे चमरो वैरोचन इन्द्रः ॥ २०६॥
प्रसुरा । प्रसुर: भागसुपर्णो द्वीपोदधिविद्य एस मिलविनमयः वातकुमारः । कुमारशब्द: प्रत्येकमभिसम्बध्यते । प्रथमे कुले चमरो वंशेजनश्चेति द्वाविन्द्र २०६॥
अब भवनवासी देवों के कुल-भेद और उनके इन्द्रों के नाम तीन गाथाओं द्वारा कहते हैं-
गाथार्थ:- असुरकुमार, नागकुमार, सुपकुमार द्वीपकुमार उदधिकुमार, विद्यत्कुमार स्तनितकुमार, दिवकुमार, अग्निकुमार और वायुकुमार भवनवासी देवों के ये दस कुल है। इनमें से प्रथम असुरकुमार कुल में चमर और वैरोचन नामके दो इन्द्र है ॥२०६
विशेषार्थ:- सरल है ।
भृदाणंदो धरणाणंदो घेरा य वेधारी य । पुण्णव सिद्ध जल जलकंतो घोसमहघोसो || २१०॥ इरिसेणी हरिकंतो अमिदगदी अमिदवाद्दणग्निसिही अग्गीवाहणणामा बेलंच भंजणा सेसे ॥ २११।।
भूतानन्दो घरमानन्दः येणुश्च वेणुधारी च । पूर्णवशिष्टी जलप्रभः जलकान्तः घोषमहाघोषो ॥२१॥
हरिषेण: हरिकान्तः अमितगतिः अमितवाहनः अग्निशिखी अग्निबाहनामा वेलम्बप्रभवनों शेषे ॥ २१४॥
भूवा शेषे नागादिकुले इत्यर्थः । शेषस्य छापामात्रमेवार्थः ।। २१०-२११॥
गावार्थ:--'शेष' अर्थात् नागादिकुलों में भूतानन्द धरणानन्द; वेणु-वैणुधारी; पूर्ण-वशिष्ट जलप्रभ-जलकान्त घोष-महाघोष हरिषेण हरिकान्स अग्निवाहन; लम्ब और प्रभञ्जन इन्द्र हैं ||२१०-२११।।
अमितगति-अमितवात
अग्निशिखी
विशेषार्थः -- नागकुमारों के कुल में भूतानन्द और वरानन्द नामक दो इन्द्र हैं। सुपर्णकुमारों में वेणु और गुधारो द्वीपकुमारों में पू ओर वशिष्ट उदधिकुमारों में जलप्रभ और जलकास्तः
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