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भवनाधिकारः
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अथ लोकस्य सामान्य वर्णनां कृत्वा "भववितर" इत्यादिगाथासूचितपश्चाधिकाराणां मध्ये तथंव भवनाधिकार प्रकममाणस्तदधिष्ठानभूतां रत्नप्रभा तत्सहचरितां शराप्रभादिभूमि सद्गतन रकप्रस्तरान् तद्गतनारकायुरादिक च प्रासङ्गिक सर्व व्याख्याय प्रकृतं भवनाधिकार प्रवक्तुकामस्तदादी भवनलोकचैत्यालयान वन्दमान इद मङ्गलमाह
भवणेसु सत्तकोही वाहत रिलक्ख होति जिणगेहा । भवणामरिंदमाहिया मरणसमा ताणि बंदामि ॥२०८||
भवनेषु सप्तकोट्यः द्वासप्ततिलक्षारिण भवन्ति जिनगेहाति।
भवनामरेन्द्र महितानि भवनसमानि कानि वन्दे ॥२०॥ भवणे । भवनेषु सप्तकोस्यः दासप्ततिलमाणि भवन्ति जिनगेहानि । भवनामरेनामहितानि सेषां भवनसमामानि तानि बन्वे ॥२०॥
लोक का सामान्य वर्णन करने के अन्तर 'भवयितर' इत्यादि दो गाथासूत्रों में पांच अधिकारों की जो सूचना दी गई थी, उनमें से अनुकम प्राप्त भवनाधिकार प्रारम्भ करने के लिए भवनों को आधारभूत रत्नप्रभा पृथ्वी और उसकी सहचारिणी शर्करा आदि छह पृध्वियों का, उनके पटलों का
और पटलों में रहने वाले नारकी जीवों की आयु आदि सभी प्रासङ्गिक बातों की व्याख्या करके भवनाधिकार का वर्णन करने की इच्छा रखने वाले प्राचार्य सर्वप्रथम भवनलोक सम्बन्धी चैत्यालयों की वन्दना करने के लिए मंगलसूत्र कहते हैं
गाया:-भवनों में भवनकामी देव और उनके इन्द्रों से पूजित, भवनों की संख्या सहा सात करोड़ बहत्तर लाख जिन-मन्दिर है । मैं ( नेमि चन्द्राचार्य ) मनकी वन्दना करता हूँ ॥२०॥
विशेषार्थ:-भवनों में सात करोड़ बहत्तर लाख जिन-भवन है । ये जिन-भवन मवनवासी देवों और भवनेन्द्रों से पूजित हैं। जितने भवन हैं उतने ही जिनमन्दिर हैं। उन सब जिनमन्दिरों को मैं ( नभिचन्द्राचार्य) नमस्कार करता है।
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