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________________ पाथा: २०५ लोकसामान्याधिकार अथ नरक गल्छता जोबानां पृथ्वी प्रति नियमाह ममणसरिसपविहंगम फणिसिंहित्थीण मच्छमणुवाण । पढमादिसु उप्पत्ती अडयारादो दु दौण्णिवारोसि ॥२०॥ अमनस्कसरीसृपविहङ्गमरिमिझोणा मत्स्य मनुष्याणाम् । प्रथमादिपु उत्पत्तिः अष्टवारतस्तु, द्विवार इति ॥२०५।। प्रमए । प्रमकसरीसपविहगमरिणसिहस्त्रीय मान्यमनुष्याला प्रथमादिषु यथासंस्था पुरस : सिरससरं समिति, पत: REET द्विवारपर्यन्त प्रमनकः प्रथमनरकं गत्वा ततो निर्गस्य संशो मूत्वा मृत्वा पुनरवानी सम्भूय मृत्वा प्रथममरकं गाति । इवमेकबारे । एवमसंजिमोटवारं निरन्तरं योजयेत् । निरन्तरासम्भवेन एकमन्सरं गृलोया, नवं सरोसपाविषु । मस्य: सप्तमनरकं गत्वा ततः प्रत्युत्म नियंग्जोयो भूत्वा मृत्वा मरस्यः संभूय मृत्वा सप्तममरकं गच्छति । नरस्येवं निरन्तरं दिवार योजयेत् ॥२०॥ नरक जाने वाले जीवों का प्रत्येक पृथ्वी में उत्पत्ति का नियम कहते हैं: पाया:--असंज्ञी, सरीसृप, पक्षी, सपं, स्त्री तथा मत्स्य और मनुष्य प्रथमादि वृध्वियों में अनुकम से आठ वार से प्रारम्भ कर दो बार पर्यन्त उत्पन्न हो सकते हैं ।।२०५।। विशेषार्थ:-असंशी जीव प्रथम पृथ्वी पर्यन्त, सरीसृप द्वितीय पृथ्वी, पक्षी तृतीय पृथ्वी, सर्प चतुर्थ पृथ्वी, सिंह पश्चम, नो षष्ठ पौर मत्स्य एवं मनुष्य सप्तम पृथ्वी पर्यन्त ही जाते है । उपयुक्त सातों पृथ्वियों में क्रमानुसार वे असंजी आदि जीव उत्कृष्ट रूप से यदि निरन्तर उत्पन्न हों तो बाउ, मात, छह, पांच, चार, तीन और दो बार ही उत्पन्न हो सकते हैं, इससे अधिक नहीं। निरन्तर कैसे उत्पन्न होते हैं। ऐसा पूछने पर कहते हैं:-कोई असंही जीव मरकर प्रथम नरक गया। वहां से निकल कर उमने मंज्ञो पर्याय प्रान की पुनः मरकर प्रसजी हुमा । तथा मरकर पुन: प्रथम नरक गया। यह एक बार हुआ। 'पुन. वहां से निकल, संशी होकर मरा और असंज्ञो पर्याय प्रान कर मरण किया तथा पुनः नरक चला गया यह दूसरी बार हुआ । इस प्रकार अधिक से अधिक आठ बार उत्पन्न हो सकता है. इससे अधिक नहीं। नरफ से निकला हुआ गोव असंभी नहीं होता इसलिए उसे बीच में संजी पर्याय प्राम करनी पड़ी। इसी कारण यहां बीच में एक पर्याय का अन्तर होते हुए भी निरन्तर कहा है। सरीसृप, पक्षी, सर्प, सिंह और स्त्री के लिए ऐसा नियम नहीं है, वे बीच में अन्य किसी पर्याय का अन्तर हाले बिना ही उत्पन्न हो सकते हैं। मत्स्य सप्तम नरक जाकर वहा से निकल कर पहिले गभंग होगा फिर मत्स्य हो मरण कर सप्तम नरक जाएगा। क्योंकि नरक से निकला जीव सम्मुच्छंन नहीं होता । इसी प्रकार मनुष्य मरकर सप्तम नरक गया, मरकर गर्भज तियेच हुमा फिर मनुष्य हो मरकर पुनः सप्तम नरक जाएगा। क्योंकि सप्तम नरक का जीव मनुष्य नहीं होता। इसी कारण इन दोनों जीवों के बीच में एक पर्याय का अन्तर होते हुए भी निरन्तर कहा है ।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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