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पाच।। १६६-२००
धोकसामान्याधिकार पक्ष । प्रथमेन्द्र के वश १८... नवति to... वर्षसहस्रायुष्यं अभ्यमितरत तव उपरिक्ष्यमा सर्व ज्येष्ठ नवतिलशं पसंख्यपूरणा कोरचा ॥१९८!!
प्रत्येक पटल की जघन्योत्कृष्ट आगु तीन गाथाओं में कहते हैं
पापा:- प्रथम पृथ्वी के प्रथम सीमन्त बिल के नारकियों की जघन्य भायु दस हजार वर्ष (१००.०) और उत्कृष्ट आयु नब्बे हजार वर्ष । ६.०००) प्रमाण है। दूसरे निरय पटल की उत्कृष्टापु नम्बे लाख वर्ष (९०...00 ) तथा रौरव पटल को उत्कृष्ट आयु असंख्यातपूर्व कोटि प्रमाण है ११९८॥
विशेषाव:-उपयुक्त गाथा में प्रथम पटल की जघन्यायु दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट मायु नम्बे हजार वर्ष कही गई है। इससे आगे कही जाने वाली आय उत्कृष्ट ही समझनी चाहिए; जैसेनिरय पटल की नब्बे लाख और शेरव पटल की असंख्यातपूर्व कोटि प्रमाण उत्कृष्ट आय है ।
सायरदयमं तुरिये सगसगचरमिदयाम्हि इगि ति पिण । मस दसं सत्तरस उपही बावीस नेसीसं ।।१९९।। मादी अंतविसेसे रूऊणशाहिदम्हि हाणि चयं । उपरिम जट्ट' समयेणहियं इंटिमजहष्णं तु ॥२०॥
सागरदशमं तुरीये स्वकस्वकचरमेन्द्र के एक पौरिण। सन दश सप्तदश उनधयः द्वाविंशति: त्रयस्त्रिगत ।।१९९॥ आदिः अंत विशेष रूपोनाद्धाहित हानिचयं ।
उपरिमं ज्येष्ठं समये नाधिकं अधस्तनज धन्य तु ।।२०।। सायर । तुरीये चतुर्षे, उवषयः सागरोपमाणि इत्यर्णः । शेषं छायामात्रमेवाणः ॥१६॥
प्रायो । पारिः सागरशमांशाधिक १०१।२२ मते एकसागरोपमायो । १।१७।२२।३३ यथायोग्यं समच्छेवेन स्फेटिते तसापृथ्वीनां हानियो स्यातां ॥४॥३७११ कषितायुः प्रमाणपटल त्रयं मुवस्वा प्राक्तनपटालसहितरूपोनसतस्पटलाना ६११५३१ प्रतिष्यि एतावदेतावनायुश्खये २४३७।५।११ एकाविपटला कियदायुरिति सम्पास्य ययायोग्यमपक्रम पुरिणते तसत्पदलामामायुश्चयं भवति ।
एतरुपये प्राक्तमप्रास्तास्पिती संयोभिते तसरपरसानामुकमायुः प्रमाणं स्यात् । उपरिमज्ये १००.. इत्यादि समयेनाषिक व प्रपस्तनापत्तनम स्यात् ॥२०॥