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पाषा: १८६-१८७-१८८
छोकसामान्याधिका पथ क्षेत्रगतपदायक्रौर्य गाथाद्वयेनाह
घेदालगिरी भीमा जंतसयुक्कडगुहा य पडिमामी। लोहणिहग्गिकणड्ढा परमछुरिगासिपचवणं ॥१८६।। कूडा सामलिरुक्खा पयिदरणिणदीउ खारजलपुण्णा । पूयरुहिरा दुगंधा दहा य फिमिकोडिकुलकलिदा ॥१८७||
बेतालगिरयः भीमा यन्त्रशतोत्कटगुहाश्च प्रतिमाः। लोहनिभाग्निकणायाः परशुरिकासिपत्रवनम् ॥१६॥
पनि वृक्षाः दरणिनद्यः सारजलपूर्णाः ।
पूयरुधिरा दुर्गन्धाः हृदाश्य कृमिकोटिकुलकलिताः ॥१७॥ बेबाला । तालाकृतिगिरयः भीमाः पत्रिशतोकटगुहा सत्रापाः प्रतिमा तोहनिमाग्निकरणाढ्या वनं च परशुछुरिकासिपत्रकमम् ॥१६॥
कूडा। कटा: पसम्पा: शाल्मलिकुमाः बतरण्याख्या गण: मारनपुर्णाः पूपिरा दुर्गा हाथ कृमिकोटिकुलकलिताः ॥१८॥
क्षेत्रगत पदार्थों की करता का वर्णन दो गाथाओं द्वारा करते हैं
पाथार्य-उन नरकों में वेताल सरश भीमाकृति पर्वत हैं । दुःखदायक सैकड़ों यारों से भरी गुफाएं हैं। वहां स्थित प्रतिमाएं लोहमयी है एवं अग्निकणों से ज्याप्त है । फरसी, छुरिकावि या महश पत्रों से युक्त असिपत्र वन हैं। मिथ्या शाल्मलि वृक्ष हैं । वहाँ की वैतरणी नामकी नदियों मार नालाय खारे जल म भरे है, दुर्गन्धित पोप, खून से युक्त हैं तथा उनमें करोड़ों की भरे हैं ॥१८६-१९७।।
विशेषापं.-सुगम है।
अप तथाविधनदीमाप्य कि भवन्तीत्यत बाई
भग्गिमपा धावता मण्णता पीयलंति पाणीयं । . ते बदणि पविलिय खारोदयदडूढसञ्चंगा ॥१८॥
अग्निभयानावत: मन्यमानाः शीतलमिति पानीयं ।
ते पैतरणी प्रविश्य भारोदकदग्धसर्वाङ्गाः ॥१ममा पनि । अग्निपात मावन्तः मन्यमानाः शीतलमिति पानी से समनारका तरणी विस्य भारोग्यसङ्गिाः सन्त: १८॥