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________________ गाथा : १८२-१३ लोकसामान्याधिकार विशेवा:-नारको जीव नरक बिलों के उपपाद स्थानों में जन्म लेकर एक अन्तमुहत में पर्याप्तियो पूर्ण कर उपराद स्थान से च्युत हो नरक भूमि के तीक्ष्ण शनों पर गिरकर ऊपर उछलते हैं बोर पुनः उन्हीं शस्त्रों से व्याप्त पृथ्वी पर आ पड़ते हैं। अथ कियदुष्डीयन्ते इत्यत आह पणपणजोयण माणं सोलहिदं उप्पाउंति रहया । घम्माए वंसादिसु दुगुणं दुगुणंति णादब्वं ।।१८२।। पञ्चधनयोजनमानं षोडशहलं उत्पतन्ति नरयिकाः। पर्यायां बंधादिषु द्विगुणं द्विगुणं इवि ज्ञातम्यम् ॥ १२॥ पण । पञ्चधमयोजनमानं पोग्शतं अस्पतति नरयिकाः धर्मायो शारिषु पुननिगुणं दिगुणमिति तातम्यम् ॥१२॥ नारकी जीव कितने ऊचे उछलते हैं ? ऐसा पूछने पर कहते है : गावार्थ:-पांच के धन को सोलह से भाजित करने पर जो लब्ध प्राप्त हो उतने योजन प्रमाण प्रथम धर्मा पृथ्वी के नारकी उचलते हैं. तया द्वितीयादि पृष्धियों के नारकी इनसे दूने दूने उचलते हैं। ऐसा पानना चाहिए ।।१२।। विशेषार्ष:-पाच के धन १२५ को १६ से भाजित करने पर योजन प्राप्त हुआ। इसका दूना १५३ योजन, इसका दूना ३१० योजन ....... इत्यादि । अर्थात् धर्मापृथ्वी के नारकी ७ योजन ३३ कोश, वंशा पृथ्वी के १५ पोजन २, कोश, मेघा के ३१ योजन १ कोश, अजना के ६२ योजन २ कोश, अरिष्टा के १२५ योजन, मघवी के २४, योजन और माधवी पृथ्वी के नारकी ५०० योजन ऊंचे उछलते हैं। अथ तत्रस्थाः पुराणनारका उड्डीय पतितान् कि कुर्वन्ति इत्यत आह पौराणिया नदा ते दट्टणइणि रारवागम्म । खीचंति णिसिंचंति य वयेसु बहुखारवारीणि ॥१८३|| पोरा पौराणिका नारकास्तवा तान् नूतनाम् दृष्ट्वा प्रतिनिष्ठुरावा पागम्य मन्ति निविधति वरणेषु बहमारवाणि ॥१३॥ वहां रहने वाले नारकी, नछल कर गिरने वाले नारको के प्रति क्या करते है ! गावार्थ:-पुराने नारकी नये नारकियों को देखकर अति कठोर अन्य करते हुए पास भाकर उन्हें मारते हैं और उनके घावों पर अति खारा जल सींचते हैं ॥ १३॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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