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________________ १८३ गाथा । १७८-१७६ छोकसामान्याधिकार बिलों के आकारादि का निरूपण करते हैं-- गावार्थ:-जिनकी दीवारें (भीत ) वन के समान सघन हैं, ऐसे गोल, तिकोन, चौकोर आदि अनेक प्रकार के आकार वाले नरक बिल हैं । ये हमेशा सभी इन्द्रियों को दुःख देने वाली सामग्री से भरे रहते हैं ॥१७॥ विशेषाया-मुगम है। अथ तवस्थदुर्गन्धं दृष्टान्तमुखेन निर्दिशति मज्जारसाणस्परखरवाणरकरहहत्यिपहुदीण । कुहिदादइदुग्गंधा णिग्या णिच्चंधयारचिदा ॥१७८|| माजरिश्वमकरखरवानरकरभहस्तिप्रभृतीनाम् । कुथितादतिदुर्गन्धा निरया नित्यान्धकारचिताः ॥ १५८)। प्रबार । छायामात्रमेवायः॥१८॥ नरकबिलों को दुर्गन्ध के बारे में दृष्टात दाता कहते ई-. गाथा:-बिल्ली, कुत्त, सूअर, गदहे, बन्दर, ऊंट और हाथी आदि के सड़े हुए मह एवं फलेवर की दुर्गन्ध से भी अत्यधिक दुर्गन्ध नरक बिलों में है तथा वहां सर्वदा अन्धकार ही व्याप्त रहता है ॥१७८॥ विशेषायः-सुगम है। अथ तवोत्पद्यमानजीवान तदुत्पत्तिस्थान च निर्विशति उप्पज्जति तहिं बहुपरिग्गहारंभसंचिदाउस्सा | उद्दादिखायारेसुवरिन्लुववादठाणेसु ॥१७९।। उत्पद्यन्ते तेषु बहुपरिग्रहारम्भस चितायुष्याः। उष्ट्रादिमुखाकारेषु उपरितनोपपादस्थानेषु ॥१७९॥ पति । वत्पद्यन्ते तेषु बहुपरिप्रहारम्भसञ्चिलमरकायुषाः सदाविमुक्षाकारेषु उपरितनोपपावस्थानेषु ॥१६॥ नरकबिलों में उत्पन्न होनेवाले जीवों तथा उनके उत्पत्ति स्थानों के बारे में बताते हैं गायार्थ:-अधिक आरम्भ और परिग्रह के कारण नरकायु का पन्ध करने वाले जीव हो नरकविलों में जन्म लेते हैं। इनके उपपाद स्थानों का प्राकार र भादि के मुख सहश होता है, तथा ये उपपाद स्थान ऊपर होते हैं ॥१७९।।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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