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________________ गामा १७४ चौकसामान्याधिकाय - विशेषार्थ:- मेघा पृथ्वी की मोटाई २८००० योजन है। वंशा पृथ्वी योजन + मेघा पृथ्वी के ऊपर का एक हजार योजन ( १००० + १००० ) २८००० योजन वेध में से कम कर देने पर ( २८०००-२००० ) = २६००० इन्हें एक राजू में से घटा देने पर ( १ राजू - २६००० मौजन ) जो अवशेष रहे, अन्तिम पटल से मेघा पृथ्वी के प्रथम पटल का अन्तराल है । अन पृथ्वी की मोटाई २४००० योजन है, अतः २४०००-२००० २२००० योजन कम एक राजू ( १ राजू - २२००० योजन ) प्रमाण अन्तराल मेघा पृथ्वी के अन्तिम पटल और अखना पृथ्वी के आदि पटल के बीच का प्राप्त होता है । १८१ नीचे का १००० दो हजार योजनों को योजन अवशेष रहे । वही वंश पृथ्वी के aft पृथ्वी की मोटाई २०००० योजन है, बतः एक राजू ( १ राजू - १८००० योजन ) अञ्जना के अन्तिम अन्तराल है । मघवी पृथ्वी की मोटाई १६००० योजन है, अतः राजू प्रमाण अरिष्टा के अन्तिम पटल और मनवी के आदि पृथ्वियों में ऊपर नीचे एक एक हजार योजन में बिल नहीं है, अतः दो हजार योजन तो ऊपर नीचे पृथ्वी है और बोच में पोल है । अतएव क्षेत्र में से २००० योजन घटाकर अवशेष लब्ध को एक राजू में घटा देने पर अन्त आदि विलों के बीच का अन्तर प्राप्त होता है । २०००० - २०००= १८००० योजन कम पटल और अरिष्टा के प्रथम पटल का १६००० - २००० = १४००० योजन कम पटल के बीच का अन्तराल है। सभी मघवी पृथ्वी के अन्त पटल से माधवी पृथ्वी के आदि पटल का अन्तर ३००० १ योजन कम एक राजू प्रमाण है। इसकी वासना निम्न प्रकार है : ८००० मोटाई में से घटाने पर ( (2) सप्तम पृथ्वी की मोटाई ८००० योजन और श्रेणीबद्धों का बाहुल्य ' कोश है। ' कोश के १३ योजन हुए। इन्हें ४ से भाजित करने पर योजन श्रोषद्ध बिलों का बाहुल्य प्राप्त हुआ । इसे *1999_* } = 235 योजन अवशेष रहा इसका योजन अर्थात् ३९९९ योजन प्राप्त हुआ । यही सप्तम पृथ्वी के पटल की उपरिम भूमि की मोटाई है। छठी मघवी पृथ्वी के अन्तिम पटल के नीचे भी १००० योजन मोटाई वाली भूमि है, अतः दोनों को मिलाने से ( १०००+ ३९९९ 3 ) = ४९९९ १ योजन प्राप्त हुए, इन्हें सक्षम पृथ्वी के बाहुल्य में से घटाने पर ( ८००० - ४९९९ ) ३००० भोजन अवशेष रहे । इन्हें एक राजू में से घटा देने पर ( १ राजू -- ३००० से ) जो अवशेष रहे वही मघत्री पृथ्वी के अन्तिम पटल से माधवी पृथ्वी के अवधि पटल के बीच का अन्तराल है । अथ बिलानां तियंग्रन्तरं गाथाद्वयेन निरूपयति = -
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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