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________________ १७६ त्रिलोकसार । पापा : १७१-१५२ अथ पुनरपि तबाहुल्यं प्रकारान्तरेणाह- . रूबहियपुढपिसंखं तियचउसनेहि गुणिय छन्मजिदे । कोसाण बेलियं . इंदयसेढीपदण्णाण ॥१७१।। पाधिकाथ्वीसंख्या त्रिकचतुःसप्तभिः गुणयित्वा षडभते । कोशाना बाहल्यं इन्द्रकणीप्रकोर्णानाम् ॥१७१।। पाल्पापितपृथ्वीरूपा । छ ३।३।३ छ ४।४।४ छ स्यादि विपतुः ४ सप्तभि७ गुणपिरया ६८।१४ च ६१२॥छ १२।१६।२८ इत्याशि प्रत्येक पमिर्भागे कृते ।।१।१२। इत्यादि कोशानां सहस्य त्रिकोणीयज्ञप्रकोपेकानाम् ॥१७॥ अन्य प्रकार से इसी बाहुल्य को कहते हैं: गाया:- एफ अधिक पृथ्वी संख्या को तीन, चार और सात से गुणित कर छह का भाग देने पर जो लब्ध प्राप्त हो उतने कांश प्रभाग क्रमशः इन्द्रक, श्रगोबद्ध पर प्रकीर्णक बिलों का बाहुल्य होता है ।१७१। विशेषार्थ:- नारक पत्रियों की संख्या में १.१ घम करके तीन जगह स्थापन कर क्रमशः तीन, पार और सात का गुणा करने पर जो लब्ध प्राप्त हो उसमें ६ का भाग देने से इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीकों का बाहुल्य ( ऊँचाई ) प्राप्त होता है । जैमे:--- इन्द्रकों का बाहुल्य । मंगीबद्धों का बाहुल्य । प्रकोण कों का बाहुल्प। प्रथम प.-१+१=२४३६.६-१ कोश २ x ४ = ६ - १ कोशर ४७ = १४ : ६२°कोश द्वितीयप.-२+१=३ x ३=8: ६=१३कोश३४४-१२-६२ ,३४७- २१ : ६ =३." तृतीय प - ३+१-- ४ ४ ३ = १२:६-२ -४४४=१६:६-२ ४x७ - २८६-४" चतुर्थ प.-४+१-५४ ३=१५ =२* ५५४-२०६="५४७= ३५६-५१, पश्चम पृ-५+१-६४३= १ ६=३ ॥६x४-२४, ६=४ ५६४७ - ४२-६- . षष्ठ प-६+ १ =७४ ३=२१+६=३३.७४४-२८-६ ७ x ७ = ४६-६-.. सप्तम प.--७+१-८४ ३ = २४-६-४ -८x४ = ३२.६५ प्रकीराकों का अभाव है। अथेन्द्रकप्रभृतीनां व्यवधानप्रमाणमाइ पदराहय बिलबहलं पदरद्विदभूमिदी विसोहिला । रूऊणपदहिदाए बिलंतरं उड्ढगं तीए ।।१७२।। प्रतराहत बिलबाहल्यं प्रतरस्थितभूमिसः विशोध्य । रूपोनप हतामा बिलान्तरं अवगं तस्याः ॥१७२॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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