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गा।1९७० धोकसामान्याधिकार
१७५ अपेन्द्रकादित्रयाणां बाहुल्यं प्रमाणपति
छक्कडचोइसादिसु पडिपृढविमुखद्धसहियकोसेतु । छहिं मजिदेसु पहन्लं इंदय सेढीपदण्णाण ॥१७॥
पानाष्टानामानि पशिएनीमुम्नाधसहितकोशेषु ।
षद्भिः भक्तपु गहल्य इन्द्रकश्रेणीप्रकीर्णानाम् ॥१७०॥ धक्कट्ठ । घटना ६४८ चतुवंशम् १४ प्राविषु प्रथमपृथ्वीनकारिषु षभिर्भर प्रपमक्षितोनकादिबाहुल्यं स्यात् । द्वितीयावि प्रतिपृश्चिमुखार्ष ३४७) सहितेषु तेषु ६८।१४ कोभेषु ६ १२२२१ १२॥१६२८ छ १५।२०।३५ छ १८५२४॥४२॥ छ २११२८४८ छ २४।३२- पद्भिभलए राई इत्यादि बाहुल्यं बनाकशोरवपकीर्णकानाम् ॥१७०॥
ट्रकादि तीनों विलों के बाहुल्य का प्रमाण कहते हैं :
गापाम:- प्रत्येक पवियों के इन्द्र कादि विलों का बाहुल्य निकालने के लिए आदि अर्थात् मुख छह, आठ और चोदह में मुख (६.८.१४ ) का आधा ( ३,४,७ ) जोड़कर छह का भाग देने से क्रमशः इन्द्रक, श्रेणीचच और प्रकीर्णक विलों का बाहुल्य प्राप्त होता है ।।१७०।।
विशेषार्ष:-प्रथम पृथ्वी का आदि अर्थात् मुख ६, और १४ है। इसमें दूसरी पृथ्वी से सातवीं पृथ्वी पर्यन्त उत्तरोत्तर इसी आदि अर्थात् मुख के अंधं भाग को जोड़कर जो लन्ध प्राप्त हो उसमें ६ का भाग देने पर क्रमशः इन्द्रक, श्रेणीब। और प्रकीर्णक बिलों का बाहुल्य प्रार हो जाता है। जैसे -
मुख आदि+ अर्ध मुख का= |
प्रमाण | प्रमाण
योग फल
भाग इन्द्रक विलों का ग्रंणीवदों का
बाहुल्य बाहुल्य
प्रकीर्णकों का बाहुल्य
६,८,१४-- ०.०,०-६,८.१४-६१ कोश बाहुल्य १३ कोश बाहुल्या २३ कोश बाहुल्य
६,८,१४ +1 ___३,४.७ -- ६,१२,२१:६-१३ ॥ ३ ६,१२,२१+ ३,४,७=१२,१६,२५| ६-२ . , ..२ ४ १२,१६,२८ + ३.४,७८-११५,२०,३५ = | ६८-२३ . , ३} ५ १५,२०,३५+| ३,४,७-१८,२४,४२, ६-३ ॥
१८,२४,४२+| ३,४,७-२१,२८,४६६-३, , .४३ | २१,२८.०+ ३,४,०=| २४.३२,०+1 =४ , ,