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त्रिलोकमार
पापा:
-१६
भा संख्यातायातयोनिपत प्रदर्शनात
इंदयसेढीबद्धा पदण्णयाण कमेण वित्थारा । संखेज्जमसंखेज उभयं च य जोयणाण हवे ॥१६८।।
इन्त कोणी बचप्रकीर्णकानां क्रमेणा विस्ताराः ।
संख्येयमसंख्येयमुभयं च च योजनानां भवेत् ।।१६८॥ इंदय । छायामात्रमेवार्थः ॥१६॥ बिलों में संख्यात और असंख्यात का नियतपना दिखाने के लिए कहते है:
गाषा:-इन्द्रक, अंगीबद्ध और प्रकीर्णक बिलों का विस्तार क्रम से संख्यात योजन, असंख्यात पोजन और संख्यात एवं असंख्यात अर्थात् उभयरूप होता है 1११६८|
विशेषार्ष:--इन्द्रक बिल संख्यात योजन विस्तार वाले ही होते हैं। श्रेणीबद्ध पिल प्रसंख्यात योजन विस्तार शले ही होते हैं । तथा प्रकोणंकों में कुछ प्रकीर्णक संस्थान योजन और कुछ असंख्यात मोजन विस्तार वाले होते हैं । जैसे:-~सानों पश्वियों के ४६ इन्द्रक बिल और १६७९९५६ प्रकीर्णक डिल संख्यात योजन विस्तार वाले ही है; तथा ९६०४ धेणीबद्ध और ६७१०३६६ प्रकीर्णक बिल असंख्यात योजन विस्तार वाले ही हैं। इस प्रकार सम्पुर्ण बिल ( ६७१.३.६ + १६७५५५१+१६०४+) -८४.०..प्रमाण हैं। अपेन्द्रकगतकन्द्रत्वं विशेषयति
माणुसखेसपमाण पढमं चरिमं तु जंघुदीवसमं । उपयबिसेसे सऊणिंदयमजिदम्हि हाणिचयं ।।१६९।।
मानुषक्षेत्रप्रमाणं प्रथम चरम त जम्बूद्वीपसमम् ।
उभयविशेषे झपोनेन्द्रकभक्तं हानिचयं ॥१६॥ माणुस । मानुषत्रप्रमाणं ५००००० प्रमेन्द्रकाप्रमाणे परमेम्क नम्बूद्वीप १००००० मं उभयोविशेषे शोधने ४४00000 रूपन्यनेन्द्रक ४८ भक्त शेषे वयोशभिरपतिते ६१६६६३ शामिचर्य ज्ञातव्यं । एतजामिचयं पञ्चचत्वारियल स्फेटने कृते ४४०८३३३१ हितोयेन्द्रकायामप्रमाणं स्यात् । एवमुपपरीमकायामप्रमाणे ४४०३३३३ तवनिमेव ६१६६६ । केटयित्वा पशिलमयो ७ एणकायामप्रमाणं यात ॥१५॥